श्री कुसाई देवी यात्रा-बिलाशी: सतपुड़ा की शक्ति और गाँव का विश्वास-1-🔱 🏹 ⛰️

Started by Atul Kaviraje, October 04, 2025, 09:49:36 PM

Previous topic - Next topic

Atul Kaviraje

श्री कुसाई देवी यात्रा-बिलाशी, तालुका-शिराळा-

यह तिथि (2 अक्टूबर 2025) विजयादशमी (दशहरा) का महापर्व है, जो देवी कुसाई के शारदीय नवरात्रोत्सव का समापन और उनकी यात्रा का प्रमुख दिवस है। कुसाई देवी, इस क्षेत्र की अत्यंत जागृत ग्रामदेवता हैं।

श्री कुसाई देवी यात्रा-बिलाशी: सतपुड़ा की शक्ति और गाँव का विश्वास-

तिथि: 02 अक्टूबर, 2025 (गुरुवार) - विजयादशमी

🔱 🏹 ⛰️ 'कुसाई मातेचा उदो उदो!' 🚩 ✨

श्री क्षेत्र बिलाशी (तालुका-शिराळा, सांगली) महाराष्ट्र के सतपुड़ा क्षेत्र की तलहटी में स्थित एक ऐतिहासिक गाँव है। यहाँ की श्री कुसाई देवी को शिराळा तालुका और आसपास के क्षेत्र की अत्यंत जागृत ग्रामदेवता माना जाता है। कुसाई देवी का यह मंदिर प्राचीन काल से ही भक्तों की आस्था का केंद्र रहा है। विजयादशमी के दिन, जो कि नवरात्रोत्सव का समापन दिवस है, यहाँ देवी की विजय, शौर्य और उनके प्रति गाँव के अटूट विश्वास का भव्य उत्सव, जिसे स्थानीय रूप से यात्रा कहा जाता है, मनाया जाता है। यह यात्रा भक्ति और ग्रामीण परंपराओं के अद्भुत संगम का प्रतीक है।

लेख के 10 प्रमुख बिंदु (उदाहरण, प्रतीक और इमोजी सहित)

1. कुसाई देवी: ग्रामदेवता और शक्ति का अवतार (Kusai Devi: Gramdevta and Avatar of Shakti) 👸
स्वरूप: कुसाई देवी को सप्तशृंगी देवी या दुर्गा माता का एक स्थानीय और शांत स्वरूप माना जाता है, जो अपने भक्तों की हर मनोकामना पूरी करती हैं।

महात्म्य: वह शिराळा तालुक के कई परिवारों की कुलस्वामिनी और बिलाशी गाँव की रक्षक ग्रामदेवता हैं।

इमोजी: देवी का मुकुट 👸 और त्रिशूल 🔱।

2. विजयादशमी यात्रा का महत्व (Significance of Vijayadashami Yatra) 🚩
विजय पर्व: 02 अक्टूबर 2025, विजयादशमी (दशहरा), बुराई पर सच्चाई की विजय का प्रतीक है। देवी की यात्रा इसी विजय के उल्लास में निकाली जाती है।

नवरात्रोत्सव समापन: नौ दिनों तक चले धार्मिक अनुष्ठानों, पूजा, हवन और जागरण के बाद दशमी को घट विसर्जन और पालखी यात्रा होती है।

इमोजी: झंडा 🚩 और विजय का चिन्ह 🏆।

3. मंदिर का स्थान और प्राकृतिक सौंदर्य (Temple Location and Natural Beauty) 🏞�
भौगोलिक स्थिति: बिलाशी गाँव शिराळा तालुका में स्थित है, जो घने जंगलों और पहाड़ों से घिरा हुआ है। देवी का मंदिर प्राकृतिक सौंदर्य के बीच, शांत और पवित्र वातावरण में स्थित है।

उदाहरण: यह क्षेत्र विशेष रूप से सांपों के संरक्षण (शिराळा नागपंचमी के लिए प्रसिद्ध) और वन्यजीवन के लिए जाना जाता है, जो देवी के प्रकृति से जुड़ाव को दर्शाता है।

इमोजी: पहाड़ ⛰️ और जंगल 🌳।

4. पालखी और शोभायात्रा की परंपरा (Tradition of Palkhi and Shobhayatra) 🥁
पालखी सोहला: दशमी के दिन देवी की सजी हुई पालखी गाँव में शोभायात्रा के रूप में निकाली जाती है, जिसमें भक्तगण भक्ति गीत गाते हुए और ढोल-ताशा बजाते हुए शामिल होते हैं।

शस्त्र पूजा: मराठा परंपरा के अनुसार, इस दिन शस्त्र पूजा (तलवार और अन्य शस्त्रों की पूजा) भी की जाती है, जो देवी के शक्ति स्वरूप को नमन करती है।

इमोजी: पालखी 🛕 (प्रतीकात्मक) और ढोल 🥁।

5. लोककला और भक्तिभाव (Folk Art and Devotion) 🎭
जागरण और गोंधळ: नवरात्र और यात्रा के दौरान रात में जागरण और गोंधळ (देवी का गुणगान करने वाली लोक कला) का आयोजन किया जाता है, जिसमें स्थानीय कलाकार देवी की कथाएं प्रस्तुत करते हैं।

अखंड भक्ति: भक्तजन नंगे पैर चलकर (पायपीट करून) और उपवास रखकर अपनी अटूट श्रद्धा का प्रदर्शन करते हैं।

इमोजी: नाचते हुए लोग 💃 और हाथ जोड़ना 🙏।

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-02.10.2025-गुरुवार.
===========================================