भवानी देवी निद्राकाल प्रIरंभ-तुळजापूर-1-🙏 💖 🛏️ 🧘‍♀️ 🌙 ✨ 🛡️ 👑 🚩

Started by Atul Kaviraje, October 05, 2025, 10:30:41 AM

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Atul Kaviraje

भवानी देवी निद्राकाल प्रIरंभ-तुळजापूर-

भवानी देवी मंचकी निद्रा: तुळजापूर (03 अक्टूबर, 2025 - शुक्रवार)-

महाराष्ट्र के साढ़े तीन शक्तिपीठों में से एक, तुळजापूर की श्री तुळजा भवानी माता, संपूर्ण महाराष्ट्र और कई भारतीय राज्यों की कुलदेवी हैं। उनके नवरात्र उत्सव और उससे जुड़ी 'मंचकी निद्रा' (बिस्तर पर विश्राम) की प्रथा अत्यंत अनूठी और भक्तिपूर्ण है। यह लेख उस पावन निद्राकाल के महत्व और उससे जुड़े भक्ति-भाव पर विस्तृत विवेचन प्रस्तुत करता है।

1. परिचय: मंचकी निद्रा और उसकी विशिष्टता 🙏
मंचकी निद्रा: यह वह पवित्र काल है जब देवी माँ भवानी की मूल चल मूर्ति को गर्भगृह में सिंहासन से हटाकर, मंदिर के शेजघर (शयन कक्ष) में एक चांदी के पलंग पर विश्राम के लिए स्थापित किया जाता है।

समय: यह निद्राकाल वर्ष में मुख्य रूप से तीन बार आता है, जिसमें शारदीय नवरात्र (नवरात्र से पहले) और उत्सव के बाद का निद्राकाल सबसे प्रमुख है।

03 अक्टूबर 2025: यह तिथि शारदीय नवरात्र और विजयादशमी (02 अक्टूबर) के ठीक बाद आती है, जो उत्सव की शांति और विश्राम की अवस्था को दर्शाती है।

2. पौराणिक महत्व एवं योगनिद्रा का सिद्धांत 🕉�
मूल कारण: पौराणिक कथाओं के अनुसार, महिषासुर जैसे राक्षसों के साथ घोर युद्ध से पहले या उसके बाद देवी योगनिद्रा में विश्राम करती हैं ताकि युद्ध के लिए आवश्यक ऊर्जा और शक्ति का संचय किया जा सके।

योगनिद्रा: यह कोई सामान्य नींद नहीं है, बल्कि योगनिद्रा है, जिसमें देवी समाधि की स्थिति में रहती हैं, जो सृजन और संरक्षण की शक्ति को पुनर्जीवित करती है।

उदाहरण: जैसे एक योद्धा युद्ध के मैदान में उतरने से पहले या जीतने के बाद अपनी ऊर्जा को संतुलित करता है, वैसे ही माँ शक्ति भी इस काल में विश्व-कल्याण के लिए स्वयं को तैयार करती हैं।

3. निद्राकाल की अवधि ⏳
शारदीय निद्रा: मुख्य रूप से, नवरात्र उत्सव शुरू होने से लगभग आठ-नौ दिन पहले देवी को मंचकी निद्रा के लिए स्थापित किया जाता है।

उत्सव उपरांत निद्रा: विजयादशमी के बाद भी कुछ दिनों के लिए यह निद्राकाल रहता है, जिसमें देवी युद्ध की थकान से विश्राम करती हैं।

प्रतीकात्मक अर्थ: यह अवधि भक्तों को संयम, शांति और आत्म-चिंतन का महत्व सिखाती है।

4. निद्राकाल के दौरान पूजन विधि 🌸
अभिषेक: इस दौरान देवी की मूल मूर्ति का नहीं, बल्कि उनकी प्रतिनिधि मूर्ति (उत्सव मूर्ति) का पूजन किया जाता है।

शेजघर की साज-सज्जा: शेजघर को मखमली परदों और सुगंधित वस्तुओं से सजाया जाता है। चांदी के पलंग पर माँ को विश्राम कराया जाता है।

नित्योपचार: निद्राकाल के दौरान भी देवी को सुबह और शाम सुगंधित तेल और पंचामृत से अभिषेक किया जाता है, जिससे उनकी थकान दूर हो।

श्रद्धा: पुजारी और भक्त भी इस अवधि में बिस्तर या गद्दे का उपयोग नहीं करते, जो देवी के प्रति अपनी पूर्ण श्रद्धा और सेवाभाव को दर्शाता है।

5. भक्त और निद्राकाल का सम्बन्ध ❤️
भक्ति का रूप: निद्राकाल भक्तों को माँ की सेवा का एक अलग और अत्यंत कोमल रूप सिखाता है, जहाँ उन्हें एक पुत्री या माँ के रूप में दुलार दिया जाता है।

समर्पण: भक्त इस अवधि में विशेष रूप से भजन, कीर्तन और जप करते हैं, ताकि देवी की योगनिद्रा में कोई विघ्न न आए।

प्रार्थना: इस काल में माँ से आध्यात्मिक शक्ति और आंतरिक शांति की प्रार्थना की जाती है।

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(Prayer: Bhakti) (Heart: Vatsalya Prem) (Bed: Manchaki Nidra) (Meditating person: Yognidra) (Moon: Night/Vighn) (Sparkle: Pavitrata/Shakti) (Shield: Vijay/Protection) (Crown: Devi's Status) (Flag: Utsav/Pratishthapana)

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-03.10.2025-शुक्रवार.
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