द्विदल व्रत - दालों के त्याग का आध्यात्मिक महत्त्व-'द्विदल व्रत की पुकार'-

Started by Atul Kaviraje, October 05, 2025, 10:22:19 PM

Previous topic - Next topic

Atul Kaviraje

द्विदलव्रत-

द्विदल व्रत - दालों के त्याग का आध्यात्मिक महत्त्व-

हिंदी कविता: 'द्विदल व्रत की पुकार'-

थीम: द्विदल व्रत का त्याग, शनि की शांति और आत्म-संयम का महत्त्व।

1. प्रथम चरण: व्रत की पुकार
आज द्विदल का करना है त्याग,
व्रत की है यह पवित्र पुकार।
छोड़ो दाल और सारा विराग,
मन में भर लो भक्ति का सार।

हिंदी अर्थ: आज हमें दालों का त्याग करना है, यह व्रत की पवित्र माँग है। दालों को त्यागकर मन के सारे बैर भाव छोड़कर, मन में भक्ति का सार भर लो।

2. द्वितीय चरण: शनि प्रदोष का दिन
आज शनिवार और प्रदोष का योग,
शिव 🔱 की कृपा बरसती खास।
संयम से कटे शनि का रोग,
पूरी हो मन की हर आस।

हिंदी अर्थ: आज शनिवार और प्रदोष व्रत का शुभ संयोग है, जिस पर भगवान शिव की विशेष कृपा बरसती है। संयम रखने से शनि के कारण उत्पन्न कष्ट दूर होते हैं, और मन की हर इच्छा पूरी होती है।

3. तृतीय चरण: दालों का त्याग
मूंग, उड़द, चना सब हैं वर्जित,
छोड़ो बेसन और अहंकार का भाव।
शरीर हो हल्का, मन हो अर्जित,
बढ़े सात्विकता का सद्भाव।

हिंदी अर्थ: मूंग, उड़द और चना जैसी सभी दालें वर्जित हैं। बेसन और अहंकार के भाव को छोड़ दो। शरीर हल्का हो और मन संयमित, जिससे सात्विकता का सद्भाव बढ़े।

4. चतुर्थ चरण: द्विपुष्कर का फल
द्विपुष्कर ➕2️⃣ का शुभ है संयोग,
दूना फल देगा आज का दान।
व्रत से मिले स्वास्थ्य का भोग,
बढ़ेगा तेज और सच्चा ज्ञान।

हिंदी अर्थ: आज द्विपुष्कर योग का शुभ संयोग है, जिसके कारण आज किया गया दान और व्रत दोगुना फल देगा। व्रत से स्वास्थ्य का लाभ मिलेगा, और व्यक्ति का तेज तथा सच्चा ज्ञान बढ़ेगा।

5. पंचम चरण: मन को साधना
ये व्रत है इंद्रिय साधने की राह,
जीभ 👅 पर करना है नियंत्रण।
मन की मिटे हर अंध-चाह,
तप से मिले आत्म-पोषण।

हिंदी अर्थ: यह व्रत हमारी इंद्रियों को साधने का मार्ग है, जिसमें जीभ (स्वाद) पर नियंत्रण करना होता है। मन की हर अंधी इच्छा मिट जाती है, और तपस्या से आत्मिक पोषण मिलता है।

6. षष्ठम चरण: सादगी का भोजन
फल 🍎 और कंदमूल का हो आहार,
खाओ सिंघाड़ा, पीओ दूध 🥛 शुद्ध।
जीवन में आए शांति की बहार,
मिट जाए हर शत्रु, हर युद्ध।

हिंदी अर्थ: इस व्रत में फल और कंदमूल का आहार करना चाहिए। सिंघाड़ा खाओ और शुद्ध दूध पियो। इससे जीवन में शांति की बहार आती है, और हर प्रकार का शत्रुभाव तथा संघर्ष समाप्त हो जाता है।

7. सप्तम चरण: संकल्प की शक्ति
संकल्प दृढ़ हो, मन न हो चंचल,
यही है साधना का आधार।
द्विदल व्रत से हो जीवन मंगल,
शिव का मिले प्रेम और प्यार।

हिंदी अर्थ: संकल्प दृढ़ होना चाहिए और मन विचलित नहीं होना चाहिए, यही साधना का आधार है। द्विदल व्रत से जीवन मंगलमय हो, और भगवान शिव का प्रेम तथा स्नेह प्राप्त हो।

--अतुल परब
--दिनांक-04.10.2025-शनिवार.
===========================================