हिंदी लेख: संत बाळूमामा जन्मोत्सव - आदमापूर-1-

Started by Atul Kaviraje, October 06, 2025, 10:49:03 AM

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Atul Kaviraje

संत बाळुमामा जन्मोत्सव-आदमापूर-

हिंदी लेख: संत बाळूमामा जन्मोत्सव - आदमापूर-

दिनांक: 04 अक्टूबर, 2025 (शनिवार)
पर्व: संत बाळूमामा जन्मोत्सव (अक्कोळ/आदमापूर) और शनि प्रदोष व्रत
भाव: भक्ति भाव पूर्ण, विस्तृत एवं विवेचनपरक

सार: आज, 04 अक्टूबर 2025, शनिवार का दिन महाराष्ट्र के लिए एक अत्यंत पावन पर्व लेकर आया है। जहां एक ओर शनि प्रदोष व्रत का शुभ संयोग है, वहीं आज ही के दिन संत बाळूमामा 🐑👶 का जन्मोत्सव भी मनाया जा रहा है। महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले के आदमापूर (Admapur) में बाळूमामा का समाधि मंदिर है, जो करोड़ों भक्तों की आस्था का केंद्र है। संत बाळूमामा, जिन्हें 'मेंढपाळांचा देव' (भेड़ चराने वालों के देवता) कहा जाता है, ने अपने सरल और चमत्कारी जीवन से मानवता को सत्य, करुणा और निरंतर नामस्मरण का मार्ग सिखाया। उनका जन्मोत्सव एक महान आध्यात्मिक उत्सव है, जो भक्ति और लोक-कल्याण की भावना को पुनर्स्थापित करता है।

1. संत बाळूमामा: परिचय एवं जन्मोत्सव की तिथि
(Sant Balumama: Introduction and Janmotsav Date)

1.1 संत परिचय: बाळूमामा (जन्म: 1892, मृत्यु: 1966) महाराष्ट्र के एक प्रसिद्ध संत थे, जो अपने जीवनकाल में एक साधारण गोपालक (मेंढपाळ) के रूप में रहे। उनका मूल नाम बालू सिद्धप्पा केतकर था।

1.2 जन्म स्थान: उनका जन्म अक्कोळ (ज़िला बेलगाम, कर्नाटक) में हुआ, लेकिन उनकी कर्मभूमि और समाधि स्थल आदमापूर (ज़िला कोल्हापुर, महाराष्ट्र) है।

1.3 जन्मोत्सव का महत्व: आज, 04 अक्टूबर 2025 को उनका जन्मोत्सव (कहीं-कहीं यह तिथि मराठी पंचांग के अनुसार भिन्न होती है) विशेष उल्लास के साथ मनाया जा रहा है, जो उनके भक्तों के लिए किसी बड़े तीर्थ से कम नहीं है। 🎉

1.4 'जगाचा मालक': भक्त उन्हें श्रद्धा से 'जगाचा मालक' (संसार का स्वामी) और 'भेड़ों के संत' कहकर पुकारते हैं।

2. आदमापूर का मंदिर और भंडारा उत्सव
(Admapur Temple and Bhandara Utsav)

2.1 समाधि स्थल: आदमापूर में बाळूमामा का भव्य समाधि मंदिर 🛕 है, जहाँ हर वर्ष बड़ा भंडारा उत्सव (जिसे भंडारा यात्रा भी कहते हैं) मनाया जाता है।

2.2 प्रसाद की महिमा: भंडारा उत्सव में हजारों-लाखों भक्त शामिल होते हैं और उन्हें महाप्रसाद (भंडारा) वितरित किया जाता है, जिसे बाळूमामा की कृपा का प्रतीक माना जाता है।

2.3 भाकणूक परंपरा: इस अवसर पर 'भाकणूक' की परंपरा भी निभाई जाती है, जिसमें पुजारी बाळूमामा की वाणी के माध्यम से आने वाले वर्ष की भविष्यवाणियाँ 🔮 करते हैं, जो खेती, राजनीति और समाज से संबंधित होती हैं।

2.4 भीड़ और भक्ति: जन्मोत्सव और भंडारा उत्सव के दौरान आदमापूर में भक्तों का विशाल जन-सैलाब उमड़ता है, जो मामा के प्रति उनकी गहरी आस्था को दर्शाता है। 🧑�🤝�🧑

3. बाळूमामा के चरित्र की विशेषताएँ
(Characteristics of Balumama's Character)

3.1 सादगी और विनम्रता: मामा का जीवन अत्यंत सरल और विनम्रता से भरा था। वे हमेशा सादे वस्त्र पहनते थे और एक साधारण मेंढपाल की तरह रहते थे।

3.2 जीव-दया: वे अपने भेड़ों के झुंड 🐏 के साथ घूमते थे और सभी जीवों पर दया 💖 करते थे। उनकी भेड़ों को भी चमत्कारी माना जाता है।

3.3 निस्वार्थ सेवा: उन्होंने अपने जीवनकाल में निस्वार्थ भाव से लोगों की सेवा की और उन्हें सही मार्ग दिखाया।

3.4 सत्य और वचन: मामा के वचन पत्थर की लकीर माने जाते थे। उनका कहा हर शब्द सत्य होता था, जिसके कारण उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली।

4. बाळूमामा के चमत्कारी लीलाएँ (उदाहरण सहित)
(Miraculous Feats of Balumama - With Examples)

4.1 मरी हुई बकरी को जीवनदान: एक बार उनकी एक मरी हुई बकरी को उन्होंने अपनी शक्ति से पुनः जीवित कर दिया था।

4.2 मटन का बैंगन में रूपांतरण: एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, उन्होंने एक भक्त के यहाँ बनाए गए मांसाहार (मटन) को अपनी शक्ति से बैंगन 🍆 में बदल दिया था, जो उनकी जीव-दया और शाकाहार के प्रति आग्रह को दर्शाता है।

4.3 अन्नपूर्णा आशीर्वाद: कई बार, कम अन्न होते हुए भी, उनके आशीर्वाद से हजारों लोगों का पेट भरा गया।

4.4 रोग निवारण: उन्होंने अपनी अलौकिक शक्ति से कई भक्तों के असाध्य रोग 🤕 को दूर किया और उन्हें नया जीवन दिया।

5. बाळूमामा की शिक्षाएँ और संदेश
(Teachings and Messages of Balumama)

5.1 नामस्मरण का महत्व: मामा का सबसे बड़ा संदेश था: "अखंड नामस्मरण" 📿 करना। वे हमेशा 'राम कृष्ण हरी' और 'बाळूमामाच्या नावानं चांगभलं' का जप करने को कहते थे।

5.2 धर्म का पालन: उनकी शिक्षा थी कि हर इंसान को ईमानदारी से अपने धर्म का पालन करना चाहिए और मानवता की सेवा करनी चाहिए।

5.3 साधे जीवन का आग्रह: वे सादा जीवन और उच्च विचार के समर्थक थे और भौतिक सुखों से दूर रहने की प्रेरणा देते थे।

5.4 भेदों से मुक्ति: उन्होंने समाज में व्याप्त जाति और धर्म के भेदों को मिटाने का प्रयास किया और सभी को समान दृष्टि से देखने का संदेश दिया।

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-04.10.2025-शनिवार.
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