द्विदल व्रत - दालों के त्याग का आध्यात्मिक महत्त्व-1-

Started by Atul Kaviraje, October 06, 2025, 10:53:06 AM

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Atul Kaviraje

द्विदलव्रत-

हिंदी लेख: द्विदल व्रत - दालों के त्याग का आध्यात्मिक महत्त्व-

दिनांक: 04 अक्टूबर, 2025 (शनिवार)
पर्व: शनि प्रदोष व्रत, द्विपुष्कर योग
भाव: भक्ति भाव पूर्ण, विस्तृत एवं विवेचनपरक

सार: आज, 04 अक्टूबर 2025, शनिवार के शुभ दिन पर, जब शनि प्रदोष व्रत और द्विपुष्कर योग का विशिष्ट संयोग बना है, हम एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान 'द्विदल व्रत' की महिमा पर विचार कर रहे हैं। 'द्विदल' का शाब्दिक अर्थ है 'दो दालों वाला'। इस व्रत में मूंग, उड़द, चना, तुअर जैसी सभी प्रकार की दालें और उनसे बने पदार्थ (जैसे बेसन) का त्याग किया जाता है। भारतीय अध्यात्म में यह व्रत न केवल आहार संयम का प्रतीक है, बल्कि यह मन की शुद्धि, इंद्रिय निग्रह और ग्रहों की शांति 🪐 के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह हमें सात्विक आहार और अहिंसा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।

1. द्विदल व्रत का अर्थ और धार्मिक आधार
(Meaning and Religious Basis of Dwidal Vrat)

1.1 द्विदल का तात्पर्य: 'द्विदल' से तात्पर्य दो भागों में विभाजित होने वाली दालों (Lentils/Pulses) से है। इसमें वे सभी अनाज शामिल हैं, जो पकने से पहले या बाद में दो टुकड़ों में विभाजित हो जाते हैं।

1.2 त्याग का आधार: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, विशेषकर एकादशी, प्रदोष या कुछ विशिष्ट चातुर्मास के व्रतों में इन द्विदल अनाजों को खाने से मना किया जाता है।

1.3 विष्णु से संबंध: ऐसा माना जाता है कि द्विदल खाद्य पदार्थों पर भगवान विष्णु 🕉� का प्रभाव कम होता है, और इन्हें ग्रहण करने से व्रत के आध्यात्मिक लाभ में कमी आती है।

1.4 इंद्रिय संयम: यह व्रत केवल भोजन का त्याग नहीं, बल्कि स्वाद और इच्छाओं पर नियंत्रण स्थापित करने का एक अभ्यास है।

2. वैज्ञानिक और स्वास्थ्यगत दृष्टिकोण
(Scientific and Health Perspective)

2.1 पचने में भारी: दालें प्रोटीन से भरपूर होने के कारण पचने में भारी होती हैं, खासकर उपवास के दिनों में, जब पाचन तंत्र को आराम की आवश्यकता होती है। 😌

2.2 वात दोष: आयुर्वेद के अनुसार, दालें वात दोष (गैस और वायु) को बढ़ाती हैं। व्रत के दिनों में शरीर को हल्का और शांत रखने के लिए इन्हें वर्जित किया जाता है।

2.3 हल्का आहार: द्विदल व्रत के दौरान फल, दूध, कंदमूल और सामा/राजगीरा जैसे हल्के खाद्य पदार्थ लिए जाते हैं, जो शरीर को डिटॉक्स (Detox) करने में मदद करते हैं।

2.4 शारीरिक शुद्धि: इस व्रत का पालन शरीर की भीतरी शुद्धि (Internal Cleansing) के लिए भी अत्यंत लाभकारी माना जाता है।

3. द्विदल व्रत और शनि प्रदोष का संबंध
(Connection between Dwidal Vrat and Shani Pradosh)

3.1 प्रदोष का नियम: प्रदोष व्रत में, जो भगवान शिव को समर्पित है, एकादशी के कुछ नियमों का पालन किया जाता है, जिसमें अक्सर अनाज और द्विदल का त्याग शामिल होता है।

3.2 शनि शांति: आज शनि प्रदोष है। शनि ग्रह न्याय और तपस्या का कारक है। तपस्या के रूप में आहार संयम (द्विदल व्रत) शनिदेव को प्रसन्न करने का एक उत्तम मार्ग है।

3.3 तप और त्याग: द्विदल व्रत तप और त्याग की भावना को मजबूत करता है, जो शनि के गुण हैं। व्रत का दृढ़ता से पालन शनि के शुभ फल को बढ़ाता है।

3.4 शिव और सात्विकता: शिव पूजा में सात्विकता अत्यंत महत्वपूर्ण है। दालों को त्यागने से भोजन सात्विक होता है, जिससे पूजा में एकाग्रता बढ़ती है।

4. द्विदल व्रत में त्याज्य प्रमुख पदार्थ (उदाहरण सहित)
(Main Prohibited Items in Dwidal Vrat - With Examples)

4.1 साबुत दालें: चना दाल, मूंग दाल (छिलके वाली और बिना छिलके वाली), उड़द दाल, तुअर दाल (अरहर)।

4.2 दालों से बने उत्पाद: बेसन (चने के आटे से बना), पापड़, वड़ियाँ और दाल से बनी मिठाईयाँ।

4.3 कुछ विशेष अनाज: कई स्थानों पर चावल 🍚 और गेहूं के साथ-साथ द्विदल को भी त्यागा जाता है, जिससे केवल फलाहार किया जा सके।

4.4 तेल: कुछ स्थानों पर मूंगफली या सोयाबीन (जो द्विदल हैं) से बने तेल का भी त्याग किया जाता है।

5. व्रत में स्वीकृत (खाने योग्य) खाद्य पदार्थ
(Permitted Food Items in the Vrat)

5.1 फल और सब्जियाँ: सभी प्रकार के फल 🍎🍌 और कंदमूल (आलू, शकरकंद) खाए जा सकते हैं।

5.2 दूध और उत्पाद: दूध 🥛, दही, पनीर (यदि अनाज से न बना हो) और घी का सेवन किया जा सकता है।

5.3 फलाहारी अनाज: सामा चावल (भगर), राजगीरा (चौलाई), कुट्टू का आटा, सिंघाड़े का आटा और सबुदाना का उपयोग किया जाता है।

5.4 मसाले: सेंधा नमक, काली मिर्च और कुछ सादे मसाले उपयोग में लाए जाते हैं।

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-04.10.2025-शनिवार.
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