फत्तेयाजदहम 'ग्यारहवीं शरीफ' - गौस-ए-आजम का पर्व-2-

Started by Atul Kaviraje, October 06, 2025, 10:54:41 AM

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Atul Kaviraje

फत्तेयाजदहम ग्यारहवी शरीफ-

हिंदी लेख: फत्तेयाजदहम 'ग्यारहवीं शरीफ' - गौस-ए-आजम का पर्व-

6. लंगर की प्रथा और सामाजिक समरसता
(The Practice of Langar and Social Harmony)

6.1 लंगर की शुरुआत: गौस-ए-आजम खुद हर महीने की 11 तारीख को अपने दस्तरखान पर खुद्दाम (सेवक) और मेहमानों को खाना खिलाया करते थे। 🍲

6.2 समानता: उनके दस्तरखान पर गरीब हो या अमीर, बादशाह हो या फ़कीर, सबको समान रूप से खाना खिलाया जाता था।

6.3 सर्वश्रेष्ठ अमल: गौस-ए-आजम ने फरमाया था कि खाना खिलाने से बड़ा अमल (पुण्य का कार्य) और हुस्ने अख़लाक (उत्तम चरित्र) से बड़ी नेकी उन्होंने नहीं देखी।

6.4 भाईचारा: लंगर की यह परंपरा सामाजिक समरसता और भाईचारे को मजबूत करती है, जहाँ सब मिलकर भोजन करते हैं।

7. पारिवारिक आयोजन और घर की रस्में
(Family Events and Household Rituals)

7.1 घर पर फातिहा: मुसलमान परिवार अपने घरों में साफ़-सफाई करके ईसाले-सवाब के लिए विशेष फातिहा का आयोजन करते हैं।

7.2 शीरीनी और खीर: फातिहा के बाद शीरीनी (मिठाई), विशेषकर खीर या हलीम, तैयार की जाती है और आस-पड़ोस में वितरित की जाती है।

7.3 बच्चों को शिक्षा: बड़े-बुजुर्ग बच्चों को गौस-ए-आजम की जीवनियाँ और नेक बातें 👨�👩�👧�👦 सुनाते हैं, ताकि वे उनकी शिक्षाओं से प्रेरित हो सकें।

7.4 वसाइल (माध्यम): भक्त गौस-ए-आजम को वसीला (माध्यम) बनाकर अल्लाह की बारगाह में दुआ करते हैं।

8. 11वीं शरीफ और अन्य इस्लामी पर्व
(11th Sharif and other Islamic Festivals)

8.1 उर्स का महत्त्व: उर्स (पुण्यतिथि) का आयोजन औलिया-ए-किराम की याद में किया जाता है, जबकि ईद जैसे पर्व पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की शिक्षाओं पर आधारित हैं।

8.2 महीने की रस्म: ग्यारहवीं शरीफ हर महीने की 11 तारीख को मनाया जाता है, जो इसे अन्य सालाना पर्वों से अलग करता है।

8.3 दीन को ताक़त: गौस-ए-आजम ने इस्लाम को पुनर्जीवित किया। इसलिए उनकी याद मनाना दीन (धर्म) को ताक़त देने जैसा है।

8.4 दुआ की क़बूलियत: इस दिन सच्चे दिल से की गई दुआ 🤲 अल्लाह की बारगाह में जल्दी क़बूल होती है।

9. आज के दिन करने योग्य खास अमल
(Special Deeds to Perform on this Day)

9.1 दरूद पाक: गौस-ए-आजम पर दरूद-ए-पाक का कसरत से पाठ करना।

9.2 दुआ-ए-खैर: संपूर्ण आलम-ए-इस्लाम और मानवता की अमन और सलामती के लिए दुआ करना।

9.3 ज़्यारत: दरगाहों या पवित्र स्थलों की ज़्यारत (यात्रा) करना (यदि संभव हो)।

9.4 नमाज़: नमाज़ को पाबंदी से अदा करना और नेकी के कामों में हिस्सा लेना।

10. निष्कर्ष: मोहब्बत और अमन का पैगाम
(Conclusion: Message of Love and Peace)

10.1 अकीदत का पर्व: ग्यारहवीं शरीफ अकीदत (श्रद्धा) और मोहब्बत का पर्व है, जो हमें तपस्या और परोपकार की राह दिखाता है।

10.2 नेक रास्ते पर चलना: गौस-ए-आजम की याद मनाना इस बात का संकल्प लेना है कि हम उनके दिखाए गए नेक रास्ते पर चलेंगे।

10.3 बरकत की दुआ: हम दुआ करते हैं कि इस पाक दिन की बरकत से दुनिया भर में अमन, शांति और भाईचारा 🕊� कायम हो।

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-04.10.2025-शनिवार.
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