गोवा का देवी भगवती उत्सव: भक्ति, परंपरा और 'पुनव' की रात-

Started by Atul Kaviraje, October 10, 2025, 04:55:00 PM

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Atul Kaviraje

देवी भगवती उत्सव-गोवा-

गोवा का देवी भगवती उत्सव: भक्ति, परंपरा और 'पुनव' की रात (07 अक्टूबर, 2025 - मंगलवार)-

देवी भगवती उत्सव पर हिंदी कविता (दीर्घ) 🌸-

यह कविता गोवा के देवी भगवती उत्सव और पुनव की रात की भक्तिमय भावना, चंद्रमा की शीतलता, और स्थानीय परंपराओं को दर्शाती है।

1. प्रथम चरण: पूर्णिमा का आगमन 🌙
आश्विन मास की शुभ्र पूर्णिमा, आई यह पावन रात।
गोवा भूमि में भक्ति छाई, देवी का मिलता साथ।
पर्णेम की यह पावन धरती, उत्सव का है आज समाँ,
देवी भगवती के चरणों में, झुके सबों का माथा यहाँ।

अर्थ: यह चरण आश्विन पूर्णिमा के पवित्र आगमन और गोवा के पर्णेम में उत्सव के माहौल का वर्णन करता है, जहाँ सभी भक्त देवी भगवती के चरणों में नतमस्तक हैं।

2. द्वितीय चरण: मंदिर की भव्यता 🛕
दीपस्तंभ हैं ऊँचे खड़े, प्रकाश की करते बात,
हजारों दीयों से जगमग, जैसे हो तारों की बारात।
काले पत्थर के दो गजराज, द्वार पर हैं करते स्वागत,
मंदिर की यह प्राचीन शोभा, देती है शांति और ताक़त।

अर्थ: इसमें मंदिर के भव्य दीपस्तंभों का वर्णन है, जो हजारों दीयों से जगमगाते हैं। प्रवेश द्वार पर काले पत्थर के दो हाथी (गजराज) खड़े हैं, जो भक्तों का स्वागत करते हैं, और मंदिर की प्राचीन सुंदरता से शांति मिलती है।

3. तृतीय चरण: तरंगों का जुलूस 🚩
सजी-धजी हैं ऊँची तरंगे, रंग-बिरंगे फूलों से,
उत्साह भरा है भक्तों में, खुशबू आती कूलों से।
सातेरी के घर जाती रात में, पाहुणचार को पावन,
मंगलवार को वापस आतीं, मन होता प्रमुदित सावन।

अर्थ: यह चरण उत्सव के मुख्य आकर्षण 'तरंगों' (सजाए गए खंभों) के जुलूस का वर्णन करता है। ये तरंगे रात में श्री सातेरी मंदिर में अतिथि के रूप में जाती हैं और मंगलवार को (07 अक्टूबर) वापस आती हैं, जिससे भक्तों का मन प्रसन्न होता है।

4. चतुर्थ चरण: भूतनाथ की अनूठी कथा 👻
देव भूतनाथ वन से आएं, अपना रोष दिखाने को,
मंदिर नहीं मिला है उनको, दुनिया को यह बताने को।
भक्त मनाते, पीछे चलते, एक ही रट लगाए,
"बान तू सायबा" कह-कह कर, उन्हें वे शांत कराएँ।

अर्थ: इस चरण में अनोखी परंपरा 'भूतनाथ' के गुस्से को शांत करने का वर्णन है। भक्त उनके पीछे चलकर, यह कहते हुए कि "हम आपका मंदिर बनाएँगे" (बान तू सायबा), उन्हें शांत करते हैं।

5. पंचम चरण: सांस्कृतिक रंग 🥁
वाद्य बजें, घुँघरू की ध्वनि, गूंज रही है सारी दिशा,
लोक-कला और भक्ति-गीत, देती मन को नई ऊर्जा।
महाजन और शाही परिवार, सब मिलकर ये रीत निभाएं,
पीढ़ी-दर-पीढ़ी यह उत्सव, भक्ति-प्रेम का मार्ग बताएं।

अर्थ: इसमें उत्सव के सांस्कृतिक पहलुओं, जैसे वाद्य यंत्रों की ध्वनि, लोक-कला और भक्ति-गीतों का वर्णन है। यह उत्सव समुदायों और शाही परिवारों को एक साथ लाता है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी इस परंपरा को आगे बढ़ाते हैं।

6. षष्ठम चरण: माँ भगवती का रूप 💖
अष्टभुजा धारण माँ, शक्ति-दया का रूप,
दुष्टों का संहारक है, तेरा तेज अनूप।
रक्षा करती भक्तों की, देती अभय का दान,
तू ही दुर्गा, तू ही पार्वती, तू ही है यह जहान।

अर्थ: यह माँ भगवती के अष्टभुजा स्वरूप का गुणगान करता है, जो शक्ति और दया का प्रतीक हैं। वे भक्तों की रक्षा करती हैं और अभय (निर्भयता) का दान देती हैं।

7. सप्तम चरण: उत्सव का संदेश 🕊�
शरद चाँदनी की निर्मलता, मन में भरती शीतलता,
दूर हो सारा द्वेष-अंधेरा, आए जीवन में सरलता।
पुनव उत्सव की यह बेला, दे सबको सुख और ज्ञान,
गोमंतक की यह धरोहर, भारत की है पहचान।

अर्थ: अंतिम चरण पूर्णिमा की चाँदनी की शीतलता और उत्सव के अंतिम संदेश को दर्शाता है - मन से द्वेष दूर हो, जीवन में सरलता आए, और यह गोमंतक (गोवा) की अनूठी सांस्कृतिक विरासत भारत की पहचान है।

--अतुल परब
--दिनांक-07.10.2025-मंगळवार.
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