आयम्बील ओळी समाप्ती (नवपद ओळी): आत्म-साधना का महापर्व-1-🙏✨

Started by Atul Kaviraje, October 11, 2025, 11:07:48 AM

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Atul Kaviraje

आयम्बील ओळी समाप्ती-जैन-

आयम्बील ओळी समाप्ती (नवपद ओळी): आत्म-साधना का महापर्व-

दिनांक: 07 अक्टूबर, 2025 (मंगलवार)
पर्व: आश्विन आयम्बील ओळी समाप्ती (नवपद ओळी का समापन)
विषय: भक्ति भाव पूर्ण, विवेचनात्मक एवं विस्तृत लेख

जैन धर्म में आयम्बील ओळी को शाश्वत पर्व माना जाता है, जो चैत्र और आश्विन मास की शुक्ल सप्तमी से पूर्णिमा तक (कुल नौ दिन) मनाया जाता है। 07 अक्टूबर 2025 को इस नौ दिवसीय आत्म-शोधक तपस्या का पवित्र समापन हो रहा है। यह दिन न केवल व्रत की समाप्ति का, बल्कि नवपद (अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु तथा सम्यक् दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप) की आराधना से प्राप्त शुद्धि और आध्यात्मिक बल की सिद्धि का महापर्व है 🙏✨।

10 प्रमुख बिंदुओं में आयम्बील ओळी (नवपद ओळी) का भक्तिपूर्ण एवं विवेचनपरक परिचय

1. पर्व का स्वरूप और तिथि 🗓�
पर्व: नवपद ओळी (नौ पद की आराधना)।

अवधि: नौ दिन (आश्विन शुक्ल सप्तमी से पूर्णिमा)।

समाप्ति तिथि (2025): 07 अक्टूबर, मंगलवार (आश्विन पूर्णिमा)।

महत्त्व: यह पर्व रोग निवारण और कर्मों के क्षय के लिए मनाया जाता है।

प्रतीक: नवपद की स्थापना 🕉�, कैलेंडर 📅।

2. आयम्बील तप की कठोरता और विशिष्टता 🍚
आयम्बील का अर्थ: यह एक विशिष्ट उग्र तपस्या है, जिसमें एक आसन पर बैठकर दिन में केवल एक बार भोजन किया जाता है।

भोजन की प्रकृति: भोजन में घी, तेल, दूध, दही, गुड़, और मसालों (छह रस) का पूर्णतः त्याग किया जाता है। भोजन स्वादरहित (अरसाहार) और अत्यंत सादा (उबला हुआ अनाज) होता है।

उद्देश्य: जीभ के स्वाद (रसना इंद्री) पर विजय प्राप्त करना और आत्म-संयम बढ़ाना।

उदाहरण: प्राचीन काल में, इस तपस्या से ही श्रीपाल राजा ने कुष्ठ रोग से मुक्ति पाई थी।

प्रतीक: स्वादरहित अनाज 🌾, मुँह पर पट्टी (संयम) 😷।

3. नवपद की आराधना का रहस्य 🌟
नवपद (Nine Tattvas): ये नौ पद जैन धर्म के आधारभूत सिद्धांत हैं, जिनकी क्रमशः एक-एक दिन पूजा और तपस्या की जाती है।

अरिहंत पद (शुक्ल सप्तमी)

सिद्ध पद (शुक्ल अष्टमी)

आचार्य पद (शुक्ल नवमी)

उपाध्याय पद (शुक्ल दशमी)

साधु पद (शुक्ल एकादशी)

सम्यक् दर्शन (शुक्ल द्वादशी)

सम्यक् ज्ञान (शुक्ल त्रयोदशी)

सम्यक् चारित्र (शुक्ल चतुर्दशी)

सम्यक् तप (पूर्णिमा - समापन दिवस)

प्रतीक: नवपद चक्र ☸️, नौ बिंदु 9️⃣।

4. समापन (पारणा) का महत्त्व 🎁
तप की पूर्णता: 07 अक्टूबर, ओळी के अंतिम दिन, नवपद की विधिवत पूजा और तपस्या पूरी होती है।

पारणा: यह अगले दिन (अष्टमी) पारणा (व्रत खोलना) किया जाता है। पारणा अत्यंत सादगी से, प्रायः मुनिराज या गुरु भगवंतों की उपस्थिति में, शुद्ध सादे आहार से किया जाता है।

पारणा का फल: तपस्या का फल उसी क्षण प्राप्त होता है जब तपस्वी विनयपूर्वक और निर्दोष भाव से पारणा करता है।

प्रतीक: भोजन का थाल 🍲, हाथ जोड़ना 🙏।

5. कर्मों के क्षय का सिद्धांत 🔥
अनादि कर्म: जैन दर्शन के अनुसार, तपस्या ही अनादि काल से लगे कर्मों को काटने का एकमात्र माध्यम है।

आयम्बील की विशिष्टता: छह रसों के त्याग से स्वाद पर आसक्ति (तृष्णा) टूटती है, जिससे नूतन कर्मों का बंध रुकता है और संचित कर्मों की निर्जरा (क्षय) होती है।

प्रतीक: कर्मों का जलना 🔥, तराजू (न्याय) ⚖️।

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-07.10.2025-मंगळवार.
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