गोवा का 'पेडणेची पुनव' भूतनाथ उत्सव-1-🚩

Started by Atul Kaviraje, October 11, 2025, 11:17:42 AM

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Atul Kaviraje

भूतनाथ उत्सव-गोवा-

🚩 भक्ति-भावपूर्ण लेख: गोवा का 'पेडणेची पुनव' भूतनाथ उत्सव (07 अक्टूबर 2025 - मंगलवार) 🌙-

दिनांक: 07 अक्टूबर 2025, मंगलवार
स्थान: श्री भगवती देवस्थान, पेडणे (पर्णम), गोवा

गोवा के उत्तरी छोर पर स्थित पेडणे (Pernem) तालुका में मनाया जाने वाला 'पेडणेची पुनव' उत्सव, जिसे दशहरे (Dasara) के साथ-साथ कोजागिरी पूर्णिमा की रात को आयोजित किया जाता है, भक्ति, लोककथाओं और गूढ़ परंपराओं का एक अद्भुत संगम है। यह सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि गोवा की सदियों पुरानी सांस्कृतिक विरासत और लोक-परंपराओं का जीवंत प्रमाण है, जहाँ लोकदेवता श्री देव रवळनाथ और श्री देव भूतनाथ की अलौकिक शक्ति में भक्तों का अटूट विश्वास देखने को मिलता है।

1. उत्सव का नाम और तिथि 📅
1.1. पुनव का अर्थ: कोंकणी में 'पुनव' का अर्थ पूर्णिमा होता है। यह उत्सव आश्विन मास की पूर्णिमा (कोजागिरी पूर्णिमा) की रात को होता है।

1.2. 07 अक्टूबर 2025: इस वर्ष यह उत्सव 07 अक्टूबर 2025, मंगलवार को मनाया जाएगा, जो दशहरे के आसपास की तिथि होती है।

1.3. मुख्य देवता: यह उत्सव मुख्य रूप से श्री देवी भगवती के परिसर में स्थित लोकदेवता श्री देव रवळनाथ और विशेष रूप से श्री देव भूतनाथ को समर्पित है।

2. श्री देव भूतनाथ का महत्व ✨
2.1. संरक्षक देव: श्री देव भूतनाथ को आत्माओं का स्वामी (Lord of Spirits) और भक्तों का शक्तिशाली संरक्षक देवता माना जाता है, जो नकारात्मक ऊर्जाओं और बुरी शक्तियों से रक्षा करते हैं।

2.2. मंदिर का रहस्य: लोककथाओं के अनुसार, भूतनाथ का अपना कोई स्थायी मंदिर नहीं है और वह श्री देव रवळनाथ के साथ एक ही परिसर साझा करते हैं। इसी कारणवश, पूर्णिमा की रात को उनका एक खास 'हठ' (जिद) देखने को मिलता है।

2.3. तरंग का प्रतीक: उत्सव में देव भूतनाथ का प्रतिनिधित्व करने वाले रंग-बिरंगे और विशाल 'तरंग' (Tarang - एक लंबा सजावटी खंभा/छड़ी) का उपयोग किया जाता है, जिस पर 21 साड़ियाँ लपेटी जाती हैं। यह शक्ति और समृद्धि का प्रतीक है।

3. भूतनाथ का 'हठ' और 'बांध तू सायबा' की पुकार 🗣�
3.1. मध्यरात्रि की घटना: उत्सव का सबसे नाटकीय और भावुक क्षण मध्यरात्रि के बाद आता है, जब 'गड्डे' (Gaddas - वे धार्मिक व्यक्ति जिनमें देवता की आत्मा आती है) भूतनाथ का रूप धारण कर लेते हैं।

3.2. मंदिर निर्माण की माँग: कहा जाता है कि देव भूतनाथ अपने लिए मंदिर न होने के कारण क्रोधित होते हैं और 'एक रात में' अपना मंदिर बनाने की माँग करते हुए जंगल की ओर भागने लगते हैं।

3.3. 'बांध तू सायबा' (Bandh tu Saayba): इस क्षण, भक्तगण भूतनाथ के तरंग का पीछा करते हैं और उन्हें शांत करने के लिए कोंकणी में बार-बार चिल्लाते हैं: "बांध तू सायबा!" (अर्थात्: 'रुको/शांत हो जाओ स्वामी! हम बना रहे हैं!'). यह एक गहरा भक्ति-भाव दर्शाता है कि भक्त अपने देवता को मना रहे हैं। 🙏

4. भुतबाधा और शुद्धि का विधान 🧿
4.1. दुष्ट आत्माओं से मुक्ति: इस उत्सव को नकारात्मक ऊर्जा, काला जादू और भूत-प्रेत बाधाओं से मुक्ति दिलाने वाला माना जाता है।

4.2. विशेष अनुष्ठान: जिन लोगों पर बुरी आत्माओं का प्रभाव माना जाता है, वे यहाँ आते हैं। ढोल-ताशों की तेज ताल और मशालों की रोशनी में, देवता (गड्डे के रूप में) उन पर से प्रेतबाधा दूर करते हैं।

4.3. मानसिक शांति: इस अनुष्ठान को मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि का एक माध्यम माना जाता है, जो भक्तों को सुरक्षा और शांति का भाव प्रदान करता है।

5. उत्सव का प्रारंभ: नवरात्र से पुनव तक 🔱
5.1. नवरात्र का आरंभ: पेडणेची पुनव का उत्सव वास्तव में दशहरे से पहले नवरात्र के पहले दिन घटस्थापना के साथ ही शुरू हो जाता है।

5.2. देवी भगवती की शोभायात्रा: इन नौ दिनों में, मुख्य देवता देवी भगवती और देव रवळनाथ की पालकी (Palkhi) में शोभायात्रा निकाली जाती है।

5.3. तरंगोत्सव: आठ दिनों तक देवता भूतनाथ और रवळनाथ के तरंगे (सजावटी खंभे) पारंपरिक मार्गों पर जुलूस में निकाले जाते हैं, जो उत्सव का उत्साह बढ़ाते हैं।

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-07.10.2025-मंगळवार.
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