समन्वय और अद्वैत का भाव - संत तुकाराम और शंकर की भक्ति-1-

Started by Atul Kaviraje, Today at 11:50:27 AM

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Atul Kaviraje

संत तुकाराम और शंकर की भक्ति-
(संत तुकाराम और शिव भक्ति)
(Saint Tukaram and Devotion to Shiva)
Devotion to Saint Tukaram and Shankara-

हिन्दी लेख: समन्वय और अद्वैत का भाव - संत तुकाराम और शंकर की भक्ति-

विषय: संत तुकाराम और शिव भक्ति (समन्वय का दृष्टिकोण)-

महत्त्व: वारकरी संप्रदाय में विट्ठल (विष्णु) और शंकर (शिव) की एकता का दार्शनिक भाव।
भाव: भक्तिभाव पूर्ण, समन्वयवादी दृष्टिकोण। 🚩🔱

१० प्रमुख बिन्दुओं में विस्तृत विवेचनपरक लेख (Detailed Analytical Article in 10 Major Points)

१. परिचय: वारकरी परंपरा में समन्वय (Introduction: Synthesis in Warkari Tradition) 🚩
संत तुकाराम: संत तुकाराम (१७वीं शताब्दी) वारकरी संप्रदाय के सर्वोच्च संतों में से एक हैं, जिनकी भक्ति मुख्य रूप से विट्ठल (विष्णु) पर केंद्रित थी।

समन्वय: हालाँकि वारकरी संप्रदाय वैष्णव (विष्णु भक्त) है, लेकिन इसकी नींव ही समन्वयवाद पर टिकी है। संत तुकाराम की शिक्षाओं में शिव और विष्णु की एकता का भाव स्पष्ट झलकता है।

२. 'शिव और केशव' की एकता का दर्शन (Philosophy of Unity between Shiva and Keshava) 🕉�
अद्वैत भाव: संत तुकाराम ने अपने कई अभंगों में यह स्पष्ट किया है कि शिव (शंकर) और केशव (विट्ठल) अलग-अलग नहीं हैं, बल्कि एक ही परब्रह्म के दो रूप हैं।

उदाहरण: उनका दर्शन 'हरिहर' के रूप में प्रकट होता है, जहाँ शिव और विष्णु को एक साथ पूजा जाता है। यह भारत की सनातन परंपरा के समन्वयवादी सिद्धांत का प्रमाण है।

३. तुकाराम के अभंगों में शिव का उल्लेख (Mention of Shiva in Tukaram's Abhangs) 📖
पूजा का माध्यम: तुकाराम महाराज ने शिव का उल्लेख अक्सर विट्ठल भक्ति के पूरक के रूप में किया है।

उदाहरण: वे शिव को आदिनाथ (प्रथम गुरु) या अन्य संतों के आराध्य देव के रूप में आदर देते हैं। उनके लिए, शिव उस परम सत्य का ही हिस्सा हैं जिसे वे विट्ठल के रूप में अनुभव करते थे।

४. ज्ञान-वैराग्य के प्रतीक (Symbol of Knowledge and Renunciation) 🧘
वैराग्य: संत तुकाराम ने शिव को वैराग्य और त्याग का प्रतीक माना। शिव की तपस्वी मुद्रा और भस्म लेपन का भाव तुकाराम की संसार से विरक्ति के भाव से मिलता है।

ज्ञान: शिव को ज्ञान और योग का देवता भी माना जाता है। तुकाराम की भक्ति में भी ज्ञान और आत्म-साक्षात्कार (Self-realization) का महत्व है, जो उन्हें शिव से जोड़ता है।

५. शिव-विट्ठल भक्ति का सांस्कृतिक मेल (Cultural Fusion of Shiva-Vitthal Devotion) 🤝
पंढरपूर का भाव: पंढरपूर, जो विट्ठल का धाम है, वहाँ भी कई शिवालय मौजूद हैं। यह दर्शाता है कि वारकरी समाज ने कभी भी दोनों देवताओं को अलग नहीं माना।

समाधि स्थल: संत तुकाराम के जीवन में शिवभक्तों और शिव मंदिरों का आदर हमेशा बना रहा, जो सांस्कृतिक मेलजोल का प्रतीक है।

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-13.10.2025-सोमवार.
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