⚖️ नीतिशास्त्र का अवलोकन (चाणक्य सूत्र) ⚖️ चाणक्य नीति, अध्याय 2, श्लोक 1-📜🧠⚖️

Started by Atul Kaviraje, November 18, 2025, 09:59:33 PM

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Atul Kaviraje

चाणक्य नीति द्वितीय अध्याय -

अनृतं साहसं माया मूर्खत्वमतिलोभिता ।
अशौचत्वं निर्दयत्वं स्त्रीणांदोषास्वभावजाः ।।१।।

⚖️ नीतिशास्त्र का अवलोकन (चाणक्य सूत्र) ⚖️

(चाणक्य नीति, अध्याय 2, श्लोक 1 पर आधारित एक लंबी मराठी कविता)

मूल श्लोक:

अनृतं सहसं माया मुरुकत्वमतिलोभिता।

असौचत्वं निर्दयत्वं स्त्रीनिन्दोषस्वभावज:।।1।

1. नीतिशास्त्र का आरंभ

चाणक्य नीति कहती है कि वह प्रकृति के दोषों का अवलोकन और परीक्षण करता है।

अर्थ:
आचार्य चाणक्य मानव स्वभाव का अवलोकन करके नीतिशास्त्र का ज्ञान दे रहे हैं।
वह मानव स्वभाव के कुछ स्वाभाविक दोषों का परीक्षण कर रहे हैं।

2. असत्य और साहस

'अनृतं' का अर्थ है झूठ बोलने की आदत,
'सहसं' का अर्थ है विचारहीन जहाँ कोई विचार नहीं है।

अर्थ:
'अनृतं' का अर्थ है झूठ बोलने या असत्य बोलने की प्रवृत्ति।
'साहस' का अर्थ है बिना सोचे-समझे साहस,
जो अक्सर खतरनाक हो सकता है।

3. माया और मूर्खता

'माया' छल का एक मधुर रूप है,
'मूर्खता' वह है जहाँ
बुद्धि अनुपस्थित होती है।

अर्थ:
'माया' का अर्थ है छल या चतुराईपूर्ण धोखे का एक हल्का रूप।
'मूर्खता' का अर्थ है सोचने की शक्ति का अभाव या तुरंत भावनात्मक निर्णय लेने की क्षमता का अभाव।

4. अत्यधिक लोभ और संचय

'अतिलोभिता' का अर्थ है धन की इच्छा,
संग्रह की भावना
शांति की एक दुर्लभ साँस है।

अर्थ:
'अतिलोभिता' का अर्थ है लोभ की पराकाष्ठा -
धन, वस्तुओं या अधिकारों की तीव्र इच्छा।

यह मनोवृत्ति मन की शांति खो देती है।

5. पवित्रता और कठोरता

'अशौचत्वम्' का अर्थ है पवित्रता से कुछ दूरी,
'निर्दयत्वम्' कर्म में कठोर मनोवृत्ति दर्शाता है।

अर्थ:
'अशौचत्वम्' - आंतरिक या बाह्य अशुद्धता,
आचरण में अशुद्धता या नैतिक शिथिलता।
'निर्दयत्वम्' - कर्म में कठोरता या निर्दयता।

6. स्वभाव के दोष

ये सभी गुण
स्त्रियों में अधिक पाए जाते हैं,
'स्वभावजः' एक बुद्धिमान व्यक्ति का दोष है।

अर्थ:
चाणक्य का मानना ��है कि ये सभी दोष (अनियंत्रितता, साहस, मोह, लोभ आदि)
पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों के स्वभाव में अधिक दिखाई देते हैं।

वह कहते हैं कि ये दोष जन्मजात होते हैं - अर्थात जन्म से ही निहित होते हैं।

7. नैतिकता का निष्कर्ष

यह नैतिकता का केवल एक व्यावहारिक भाग है,
दोषों पर नज़र रखना
और कर्म का त्याग करना।

अर्थ:
यह श्लोक किसी का अनादर करने के लिए नहीं है।

यह व्यापार में सावधानी बरतने पर ज़ोर देता है।

स्वभाव के दोषों को पहचानना,
यही चाणक्य का संदेश है।

📜🧠⚖️💡🚫💢🗝�

--अतुल परब
--दिनांक-16.11.2025-रविवार.   
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