चाणक्य नीति द्वितीय अध्याय - 🙏 भाग्य का महाफल (नीति सूत्र) 🙏🙏💰💪🍎🌿💖✨🌟

Started by Atul Kaviraje, November 18, 2025, 10:04:28 PM

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Atul Kaviraje

चाणक्य नीति द्वितीय अध्याय -

भोज्यं भोजनशक्तिश्च रतिशक्तिवराङ्गना ।
विभवो दानशक्तिश्च नाऽल्पस्य तपसः फलम् ।।२।।

🙏 भाग्य का महाफल (नीति सूत्र) 🙏
मूल श्लोक:

भोजन भोज्यं भोज्यं भोज्यं शक्तिशक्ष धन और दान

'विभावो' का अर्थ है धन और संपत्ति,
और 'दान' करना धर्म की गति है।

अर्थ: 'विभावो' का अर्थ है बहुत सारा धन (संपत्ति) प्राप्त करना
और उस धन का उचित उपयोग करके दान (दान) करने की शक्ति होना।

यही धर्म का पालन है।

4. अल्प तप का फल

ये सभी सुख नहीं हैं 'अल्पस्य तपः फलम्',
यही वह सर्वोत्तम प्रयास है जो अल्प तप से प्राप्त नहीं किया जा सकता।

अर्थ: आचार्य चाणक्य कहते हैं कि ये सभी सुख (ऊपर वर्णित)

बहुत कम तप का फल नहीं हैं (ना'अल्पस्य तपः फलम्)।

इसे प्राप्त करने के लिए, व्यक्ति को बहुत अधिक साधना करनी पड़ती है।

5. घोर तप होना चाहिए

पुण्य की वह महान साधना पहले करनी चाहिए,
तभी जीवन में सौभाग्य का यह पुंज होना चाहिए।

अर्थ: इन सभी सुखों को प्राप्त करने के लिए व्यक्ति ने अनेक जन्मों में घोर तप (तपस्या) किया होगा।

तभी उसके जीवन में इन सभी सौभाग्यों का सुंदर संयोग बनता है।

6. ईश्वरीय कृपा

प्राप्त भोजन ईश्वर प्रदत्त है, उसे भोगने की शक्ति,
पति-पत्नी के बीच प्रेम ही ईश्वर भक्ति है।

अर्थ: (इन सभी सुखों में) भोजन करना, उसे पचाने की शक्ति
और पति-पत्नी के बीच प्रेम, ये सब ईश्वर की कृपा है।

यह ईश्वरीय भक्ति का फल है।

7. कर्म का नियम

चाणक्य सूत्र हमें कर्म का यह नियम बताता है,
यदि दान करने की शक्ति मिल जाए, तो जीवन सर्वोत्तम हो जाता है।

अर्थ: चाणक्य के नीतिशास्त्र कहते हैं कि जीवन कर्म और तप का नियम है।

जो व्यक्ति धन पाकर भी दान करने की शक्ति प्राप्त कर लेता है, उसका जीवन श्रेष्ठतम (उत्तम) हो जाता है।

🙏💰💪🍎🌿💖✨🌟

--अतुल परब
--दिनांक-17.11.2025-सोमवार.   
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