🙏 कर्म योग - श्लोक 13: 'यज्ञशेष' भोजन की कथा 🙏 भगवद्गीता-🙏 🧘 🌿 🍚 🍽️ ✨ 🚫

Started by Atul Kaviraje, November 19, 2025, 07:04:31 PM

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Atul Kaviraje

तीसरा अध्यायः कर्मयोग-श्रीमद्भगवदगीता-

यज्ञशिष्टाशिनः सन्तो मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषैः।
भुंजते ते त्वघं पापा ये पचन्त्यात्मकारणात्।।13।।

🙏 कर्म योग - श्लोक 13: 'यज्ञशेष' भोजन की कथा 🙏

भगवद्गीता का संदेश - अध्याय 3, श्लोक 13 (यज्ञशेषशिनः सन्तो मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषैः। भुञ्जते ते त्वघं पाप ये पचन्त्यात्मककरणात्।)

📜 कविता: त्याग और समर्पण 🌸
1. त्याग का आरंभ और महत्व 🌿

जो यज्ञ के बाद बचे हुए अन्न को खाता है, वह साधु है,
वह पापों से मुक्त हो जाता है और एक निश्चित लक्ष्य प्राप्त करता है।
त्याग और प्रेम कर्म का आधार हैं,
तब व्यक्ति जीवन के लिए एक सुंदर किनारा प्राप्त करता है।

(अर्थ: जो यज्ञ (लोगों के लिए किया गया कार्य) करने के बाद बचे हुए भोजन को खाता है, वह पुण्यात्मा सभी पापों से मुक्त हो जाता है।)

2. स्वार्थ और कर्म का बंधन 🔗

जो केवल अपने लिए भोजन पकाते हैं,
वे ही पाप भोगते हैं, यही उनकी गति है।
उनके अपने विचार, सबके इरादे नहीं,
ऐसे कर्म से दुःख मिलता है, नेतु।

(अर्थ: लेकिन जो केवल अपने स्वार्थ (पेट) के लिए पाप करते हैं, वे केवल पाप खाते हैं।)

3. यज्ञ के बाद का जीवन 🌼

'मैं' वाले भाग को त्याग देना चाहिए, उसे सबको बाँट देना चाहिए,
फिर जो बचता है, उसे संतोषपूर्वक ग्रहण कर लेना चाहिए।
सृष्टि का नियम, सब देना-लेना,
इस प्रकार जीवन शुद्ध और न्यायपूर्ण हो जाता है।

(अर्थ: पहले दूसरों को देना और फिर शेष ग्रहण करना, यह भाव व्यक्ति को पवित्र बनाता है।)

4. स्वार्थ: पाप खाना ⚖️

जो स्वार्थी होकर कर्म करता है, केवल मेरा, मेरा,
वहाँ पाप का भक्षण होता है, उसका भोग ताज़ा होता है।
वहाँ दूसरों के अधिकार चूर्ण बन जाते हैं,
इसलिए उन्हें अधूरा फल मिलता है।

(अर्थ: यदि कोई केवल स्वार्थ का भोग करता है, तो वह पाप बन जाता है और बंधन उत्पन्न करता है।)

5. निष्काम कर्म और मुक्ति का द्वार 🗝�

सभी कर्म निष्काम भाव से करने चाहिए,
त्याग का भाव रखते हुए नमक को हटा देना चाहिए।
जिसका ऐसा भाव होता है, वह मुक्त हो जाता है,
जन्म-मरण के चक्र से सहज ही छूट जाता है।

(अर्थ: निष्काम कर्मों के कारण व्यक्ति मुक्ति के मार्ग पर चलता है।)

6. उदाहरण सहित व्याख्या (दान और भक्ति) ✨

किसान को अनाज बाँटना चाहिए, फिर उसे ग्रहण करना चाहिए।
माता को इसे पकाकर, फिर प्रेमपूर्वक देना चाहिए।
यही सच्चा त्याग है, भक्ति का स्वरूप है,
इस प्रकार शाश्वत सुख की प्राप्ति होनी चाहिए।

(अर्थ: पहले परिवार या समाज में अपने कर्तव्यों का पालन करना और उसके बाद ही उसे अपने लिए स्वीकार करना त्याग है।)

7. निष्कर्ष और अंतिम संदेश 💖

अतः कहना चाहिए, यही कृष्ण का वचन है,
परमात्मा महान है, स्वार्थ से मत बँधो।
कर्म ऐसे करो कि ईश्वर भी मुस्कुराएँ,
और आत्मा मुक्त होकर सुखी बैठे।

(अर्थ: गीता का परम संदेश यही है कि स्वार्थ का त्याग करके परोपकारी भाव से कर्म करना चाहिए।)

📝 प्रत्येक श्लोक का संक्षिप्त अर्थ 📖

श्लोक 1: जो यज्ञ करने के बाद बचे हुए अन्न (फल) को खाता है, वह पुण्यात्मा सभी पापों से मुक्त हो जाता है।

श्लोक 2: जो लोग केवल अपने लिए (स्वार्थपूर्वक) कर्म करते हैं, वे पापी उस कर्म से उत्पन्न पाप भोगते हैं।

श्लोक 3: अपने कर्मों में 'अहं' का त्याग करना चाहिए, दूसरों को देना चाहिए और फिर शेष को ग्रहण करना चाहिए।

श्लोक 4: जो व्यक्ति केवल अपने सुख के बारे में सोचता है, वह अनिवार्य पाप करता है।

श्लोक 5: बिना किसी अपेक्षा के किया गया कर्म (निष्काम कर्म) व्यक्ति को मोक्ष प्रदान करता है।

श्लोक 6: उदाहरण सहित, पहले अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए और फिर प्राप्त फल को ग्रहण करना चाहिए।

श्लोक 7: स्वार्थ का त्याग करके परोपकारी मन से कर्म करना, इस श्लोक का अंतिम और महत्वपूर्ण संदेश है।

🌟 इमोजी सारांश (इमोजी सारांश) 🌟
🙏 🧘 🌿 🍚 🍽� ✨ 🚫 💸 ⚖️ 🔗 💖

--अतुल परब
--दिनांक-19.11.2025-बुधवार. 
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