🙏 संत सेना महाराज: 'नित्यानेमची' भक्ति कथा 🙏🙏 🧘 👑 ✂️ 🪞 💖 ✨ 🕊️ 🍚 📜 🤍

Started by Atul Kaviraje, November 19, 2025, 07:11:50 PM

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Atul Kaviraje

संत सेना महाराज-

     "करिता नित्यनेम। राये बोलाविले जाण ॥ १ ॥

     मुख पाहता दर्पणी। आंत दिसे चक्रपाणी ॥ 2॥

     पांडुरंगे कृपा केली। राया उपरती झाली॥3॥

     कैसी झाली नवलपरी। वाटी- माझी दिसे हरी॥४ ॥

     रखुमादेवीवर। सेना म्हणे मी पामर॥५॥"

🙏 संत सेना महाराज: 'नित्यानेमची' भक्ति कथा 🙏

संत सेना महाराज का अभंग (सेना महाराज का अभंग) (नित्यानेम हेतु। राये ने पुकारा, जानो || 1 || चेहरा दर्पण सा लग रहा था। भीतर चक्रपाणि दिखाई दे रहे थे || 2 || पांडुरंग ने शोभायमान किया। राया को ऊपर उठाया गया || 3 || नवलपरी कैसी थी? कटोरा- मेरे हरि दिखाई दे रहे थे || 4 || रखुमादेवी पर। सेना ने कहा मैं पामर हूँ || 5 ||)

📜 कविता: भगवान का नाई 🪞

1. नित्यानेम और राजा का आह्वान 🔔

सेनाजी समस्त नित्यानेम कर रहे थे,
ध्यान में विट्ठल का रूप स्पष्ट था।
तभी राया की आज्ञा हुई,
जान लो कि राजा तुरंत सेवा चाहते हैं।

(अर्थ: जब संत सेना महाराज पूजा कर रहे थे, तभी राजा का बुलावा आया।)

2. कर्तव्य और भगवान का आगमन 👑

भक्त का कर्तव्य, भगवान को कभी न भूलना,
नाई की कुर्सी पकड़कर सेवा करने लगे।
भगवान स्वयं सेना बनकर दरबार में गए,
भक्ति के रूप में राजा की सेवा की।

(अर्थ: भक्त की दिनचर्या भंग न हो, इसलिए भगवान ने स्वयं नाई का रूप धारण किया और राजा की सेवा में गए।)

3. दर्पण में 'चक्रपाणि' प्रकट हुए 🔎

राजा का मुख देखकर दर्पण में अंतर आ गया,
सेना स्वयं गोविंदा के रूप में प्रकट हुए।
दर्पण देखकर राजा चकित रह गए,
उन्हें सेवारत चक्रपाणि का बोध हुआ।

(अर्थ: राजा के मुख (या दर्पण) को देखकर, उन्हें नाई के स्थान पर भगवान विष्णु (चक्रपाणि) दिखाई दिए।)

4. पांडुरंग की कृपा और उपरति 💖

पांडुरंग अत्यंत कृपालु थे,
राजा का मन भक्ति के रहस्य से भर गया।
वे उपरति हो गए, वैराग्य प्राप्त कर लिया,
सेनाजी की भक्ति का रहस्य समझ में आ गया।

(अर्थ: विट्ठल की कृपा से राजा को वैराग्य प्राप्त हुआ, उन्हें भक्ति का महत्व समझ में आया।)

5. नवलपरी और 'कटोरे' में हरि ✨

नवलपरी कितनी महान हो गई,
मेरे कटोरे में भी भगवान दिखाई देने लगे।
जो सेवा करता था, वह पवित्र हो गया,
भगवान ने असंभव को आसान बना दिया।

(अर्थ: कैसा महान चमत्कार! सेना महाराज को नाई की सामान्य वस्तुओं में भी ईश्वर के दर्शन होने लगे।)

6. भक्ति की शक्ति और विनम्र स्वरूप 🕊�

मेरे विनम्र भाई, ईश्वर मेरे मित्र हैं,
उनकी कृपा के आगे मेरा क्या हिसाब?
व्यापार में भी ईश्वर, कर्म में भी ईश्वर,
मुझे भक्ति योग प्राप्त है, अन्यत्र नहीं।

(अर्थ: भक्ति की शक्ति से साधारण कर्मों में भी ईश्वर के दर्शन होने लगे।)

7. विनम्रता और समर्पण 🙏

रखुमा देवी के वे पति, मेरे ईश्वर,
सेना कहती है कि मैं पामर और काजले हूँ।
सारा श्रेय ईश्वर को, मैं ही एकमात्र साधन हूँ,
यह आश्चर्यजनक है कि यह विट्ठल की कृपा से हुआ।

(अर्थ: सेन महाराज स्वयं को 'पामार' मानते हैं और सारा श्रेय रखुमाई के पति (विट्ठल) को देते हैं।)

📝 प्रत्येक श्लोक का मराठी अर्थ (संक्षिप्त अर्थ) 📖

श्लोक 1: जब संत सेन महाराज अपनी नित्य पूजा कर रहे थे, तभी राजा का बुलावा आया।

श्लोक 2: उनकी नित्य पूजा पूरी करने के लिए, भगवान स्वयं नाई का रूप धारण करके राजा की सेवा में गए।

श्लोक 3: जब राजा ने दर्पण में देखा, तो उन्हें नाई के स्थान पर चक्रपाणि (भगवान) दिखाई दिए।

श्लोक 4: पांडुरंग की कृपा से राजा को वैराग्य प्राप्त हुआ और उन्हें भक्ति की शक्ति का ज्ञान हुआ।

श्लोक 5: कैसा महान चमत्कार! अब राजा की सेवा के लिए उपयोग किए जाने वाले मेरे साधारण कटोरे में भी हरि (भगवान) दिखाई दे रहे हैं।

श्लोक 6: सेन महाराज ने भी अपने साधारण पेशे में भगवान की पूजा की।

श्लोक 7: सेना महाराज कहते हैं कि मैं साधारण और विनम्र हूँ; इसका सारा श्रेय रखुमाई के पति विट्ठल को जाता है।

🌟 इमोजी सारांश (इमोजी सारांश) 🌟
🙏 🧘 👑 ✂️ 🪞 💖 ✨ 🕊� 🍚 📜 🤍

--अतुल परब
--दिनांक-19.11.2025-बुधवार. 
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