कान्हा मेरा-

Started by Atul Kaviraje, November 19, 2025, 08:20:12 PM

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Atul Kaviraje

कान्हा मेरा-

१. शरारतें करके कान्हा थक गया,
गोपालों संग काल्या में रम गया।
यह जगदीश्वर थक-हारकर,
यशोदा-माता की गोद में मासूम सो गया।

२. मक्खन का काला, दूध की कटोरी,
खाते हुए की खूब मस्तीखोरी।
गोपियों को छेड़कर हँसाता था,
गोकुल में जमाई खूब यारी।

३. यमुना किनारे बजाए बाँसुरी,
गोपियों के मन में भर दी जादूगरी।
पानी पर चले, पर्वत उठाए,
करता है कितनी लीलाएँ, ये कौन सी बला है?

४. राधा की चाह में दौड़े कितना,
प्यार से भरा उसका मन उतना।
हर जीव में वह ही समाया,
प्रेम का सागर, शांति की ज्योति।

५. कंस मामा डरकर भागे,
भक्तों को दे अभय के फल।
दुष्टों का करे वह संहार,
धर्म रक्षा ही उसकी शक्ति का बल।

६. छोटा हो या बड़ा कोई,
कान्हा दिखे सबके मन में।
कभी सखा वह, कभी वह पुत्र,
कभी दिखता परमात्मा कोई।

७. यशोदा की गोद में सपनों में खोया,
गोकुल का आनंद उसी में समाया।
विश्व का पालक, अब सो गया,
जग को सिखाए निष्पाप प्रेम यह कान्हा।

--अतुल परब
--दिनांक-19.11.2025-बुधवार.
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