👑 मृत्यु का अटल सत्य: कबीर का वैराग्य ⏳ संत कबीरदासजी-👑⚰️🥀⏳⚖️👑⛓️🙏🕊️

Started by Atul Kaviraje, November 21, 2025, 08:43:19 PM

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Atul Kaviraje

कबीर दास जी के दोहे-

आय हैं सो जाएँगे, राजा रंक फकीर।
एक सिंहासन चढ़ि चले, एक बँधे जात जंजीर॥२३॥

संत कबीरदासजी के इस महत्वपूर्ण दोहे का अर्थ व्यक्त करते हुए, सात खट्टे-मीठे दोहों की एक सुंदर मराठी कविता, जो वैराग्य से भरी, रसीली और तुकबंदी वाली है।

👑 मृत्यु का अटल सत्य: कबीर का वैराग्य ⏳

(संत कबीरदासजी के एक दोहे पर आधारित कविता)

कोट: मैं जाऊंगा, राजा रंक फकीर। सिंहासन पर चढ़कर, एक जाएगा, एक जंजीर बंध जाएगी। ॥23॥

1. पहला कड़वा-मीठा दोहा (अर्थ: जन्म का अंतिम सत्य)

इस दुनिया में जो भी आया है, वह जाएगा,
यह एक सत्य है, दुनिया को प्यारा;
भाग्य का नियम, कभी टाला नहीं जा सकता,
चाहे राजा हो या रंक, सब जाएंगे।

[अर्थ: इस दुनिया में जिसने भी जन्म लिया है, उसकी मृत्यु निश्चित है। चाहे राजा हो, गरीब हो या फकीर, मौत से कोई नहीं बच सकता।]

2. दूसरा कड़वा (मतलब: सामाजिक भेदभाव का खत्म होना)

राजा को धन और शान पर घमंड करना चाहिए,
पद को तुच्छ समझना चाहिए, और दुख में भागना चाहिए;
फकीर को अलग रहना चाहिए, दूरी बनाए रखनी चाहिए,
समय किसी का साथ नहीं छोड़ना चाहिए, इसे याद रखना।

[मतलब: राजा, गरीब और तपस्वी (फकीर) के रहन-सहन भले ही अलग हों, लेकिन मौत तीनों में कोई भेदभाव नहीं करती।]

3. तीसरा कड़वा (मतलब: आखिरी सफर में फर्क)

जाने का तरीका, भले ही दिखने में अलग हो,
एक इंसान चलता है, सिंहासन से सजा हुआ;
उसकी आखिरी सफर, पूरी शान में,
मौत से पहले, पूरी दौलत, इज्ज़त और काबिलियत में।

[मतलब: एक की लाश सम्मान के साथ, सिंहासन (शान) की तरह सजी पालकी में अपनी आखिरी यात्रा पर जाती है।]

4. चौथा कड़वा (मतलब: जो बंधन से गुज़रता है)

फिर कोई और जाता है, जंजीरों से बंधा हुआ,
भोगुनिया दुख, पद है वो फकीर;
जंजीरों में, उसकी आत्मा फंसी हुई है,
आशा, भ्रम में, वो लगातार छटपटा रहा है।

[मतलब: फिर कोई और (बेचारा/कैदी) जंजीरों (जंजीरों) से बंधा हुआ जाता है। या, मोह के बंधनों में फंसी आत्मा दुख उठाती रहती है।]

5. पांचवां कड़वा (मतलब: बाहरी दिखावे की नश्वरता)

बाहरी दिखावट, चाहे कितनी भी बड़ी हो,
लेकिन, परम सत्य, बहुत छोटा है;
यह मिट्टी का शरीर, मिट्टी में ही मिल जाता है,
शक्ति, धन, सब यहीं खो जाता है।

[मतलब: मौत के समय, बाहरी दिखावट कितनी भी शानदार क्यों न हो, सब यहीं रह जाता है। शरीर नश्वर है और मिट्टी में मिल जाता है।]

6. छठा कड़वा (मतलब: ज्ञान का संदेश)

कबीरदासजी कहते हैं, ज्ञान ही ज्ञान है,
अहंकार क्या है, मान क्या है;
जीवन का समय पल भर में खत्म हो जाता है,
अच्छे कर्मों का एहसास, बस एक ही रह जाता है।

[मतलब: कबीर कहते हैं, इस नश्वर दुनिया का अहंकार क्यों? जीवन क्षणभंगुर है, अंत में अच्छे कर्म ही साथ रहते हैं।]

7. सातवां कड़वा (मतलब: आखिरी निष्कर्ष)

सारे भेद, यहीं रुके,
वैराग्य का बीज, बोया;
मृत्यु सत्य है, इसे आज स्वीकार करो,
अच्छे कर्म करो, यही जीवन का श्रंगार है।

[मतलब: मृत्यु के सामने सारे भेद खत्म हो जाते हैं, इसलिए वैराग्य स्वीकार करो। मृत्यु को सत्य मानकर, अच्छे कर्म करना ही जीवन की सच्ची खूबसूरती है।]

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--अतुल परब
--दिनांक-21.11.2025-शुक्रवार.       
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