🌸 कर्म योग: सृष्टि चक्र का रहस्य (श्रीमद् भगवद गीता - चैप्टर 3, श्लोक 16) 🌸-✨

Started by Atul Kaviraje, November 22, 2025, 07:16:08 PM

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Atul Kaviraje

तीसरा अध्यायः कर्मयोग-श्रीमद्भगवदगीता-

एवं प्रवर्तितं चक्रं नानुवर्तयतीह यः।
अघायुरिन्द्रियारामो मोघं पार्थ स जीवति।।16।।

🌸 कर्म योग: सृष्टि चक्र का रहस्य

(श्रीमद् भगवद गीता - चैप्टर 3, श्लोक 16) 🌸
पूरा श्लोक (4 लाइन)

और जो चक्र चलते हैं वे अनंत हैं।
अघयुरिन्द्रियारामो मोघम पार्थ स जीवति..16..

श्लोक का छोटा मतलब — 4 लाइन

हे पार्थ, जो इस दुनिया में भगवान के चलाए सृष्टि चक्र का पालन नहीं करता,
वह पाप का जीवन जीता है, कामुक सुखों में खुश होता है
और बर्बादी का जीवन जीता है।

📜 कविता 📜
(सभी कड़वी – 4 अलग-अलग लाइन में)
1. शुरुआत: चक्र का महत्व 🌍

नियम भगवान का है, चक्र तरल है,
चक्र दुनिया का है, त्याग कारण है।
सब कुछ एक दूसरे पर निर्भर है, धर्म सबसे बड़ा है,
देना और लेना सृष्टि का आधार है।

मतलब (4 लाइनें):
भगवान के बनाए दुनिया के नियम और चक्र लगातार चलते रहते हैं।
यह चक्र त्याग और कर्म के महत्व को दिखाता है
और सभी चीजें एक-दूसरे पर निर्भर हैं।

2. नियमों के बंधन 💫

पेड़ हवा देते हैं, बादल पानी देते हैं,
इंसान को अपना काम करना चाहिए, फल उसे सही मिलते हैं।
जो कोई भी नियमों का पालन नहीं करता, जो कोई भी स्वार्थ में लिप्त रहता है,
सभी बंधन तोड़ देता है, केवल सत्य ही मिल सकता है।

मतलब (4 लाइनें):
पेड़ हवा देते हैं, बादल बारिश देते हैं,
इंसान को भी अपना कर्तव्य करना चाहिए।
जो कोई भी स्वार्थ में लिप्त रहता है वह नियम तोड़ता है,
और सृष्टि के बंधन टूटने लगते हैं।

3. लापरवाह आत्मा 👤

जो कोई भी इस ईश्वरीय गति का सम्मान नहीं करता,
अपना कर्तव्य नहीं करता,
किसी पर ध्यान नहीं देता।
जो दुनिया से केवल लेता है,
वापस नहीं देता,
जो नियमों का विरोध करता है,
वह जो पाप कमाता है।

मतलब (4 लाइनें):
जो भगवान के सिस्टम का सम्मान नहीं करता,
वह अपने कर्तव्य से बचता है और उसे नज़रअंदाज़ करता है।
वह सिर्फ़ लेता है, देता कुछ नहीं
और नियम तोड़कर पाप जमा करता है।

4. अघयु की परिभाषा 😈

अघयु उसे कहते हैं, गीता उसे कहती है,
पाप का जीवन, बेफ़िक्र मन।
वह सिर्फ़ इंद्रियों के बारे में सोचता है,
वह सुखों में लिप्त है, यह दुनिया बेकार है।

मतलब (4 लाइनें):
गीता ऐसे व्यक्ति को 'अघयु' कहती है—
जिसका जीवन पाप से भरा हो।
वह सिर्फ़ इंद्रियों के सुखों के बारे में सोचता हो
और बेकार में इस क्षणभंगुर दुनिया में लिप्त हो।

5. इंद्रियों के सुख भोगना (हेडोनिज़्म) 🍇

ज़बान के सुख, शरीर के सुख,
सिर्फ़ ऐशो-आराम, दुखों का दर्द नहीं।
सब कुछ पाना, काम न करना,
दुनिया का बोझ उठाना, बेकार में जन्म लेना।

मतलब (4 लाइनें):
जीभ और शरीर के सुख ही उसका मकसद हैं,
कठोरता उसे मंजूर नहीं है।
वह सिर्फ भोग चाहता है
और इस तरह दुनिया पर बोझ बन जाता है।

6. मोघम जीवन (घमंड) 💔

मोघम पार्थ तो जग, श्री कृष्ण वदति,
बिना लक्ष्य के जीवन, बिना मकसद के जीवन, बेकार हो जाता है।
जहां दान नहीं, अच्छे कर्म नहीं,
वह जीवन बेकार है, यही गीता का सार है।

मतलब (4 लाइनें):
श्री कृष्ण कहते हैं—धर्म के बिना जीवन बेकार है।
बिना लक्ष्य, दान और अच्छे कर्म के
इंसान का जीवन खाली रहता है।
यही गीता का सबसे ज़रूरी संदेश है।

7. निष्कर्ष: कर्म योग को मानना ��🙏

इसलिए, हे मनुष्य, अपना कर्तव्य मान,
चक्र घुमा, पाप को भारी मत होने दे। निस्वार्थ कर्म ही जीवन का सार है,
योग करने से पाप दूर हो जाएगा।

अर्थ (4 लाइनें):
हे मनुष्य! अपना कर्तव्य स्वीकार करो और चक्र चलाते रहो।
पाप के बोझ से खुद को मत दबाओ।
निस्वार्थ कर्म ही जीवन का सच्चा सार है—
योग से कर्म करो, पाप से परे जाओ।

✨ 🙏 🕉� 🔔 🌿 🌷 💫🌸

--अतुल परब
--दिनांक-22.11.2025-शनिवार.
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