चैप्टर 3, श्लोक 17-🕉️ आत्मनिर्भरता का अमृत योग 🕉️ श्रीमद् भगवद गीता-🙏 🌊 🌟

Started by Atul Kaviraje, November 23, 2025, 04:33:53 PM

Previous topic - Next topic

Atul Kaviraje

तीसरा अध्यायः कर्मयोग-श्रीमद्भगवदगीता-

यस्त्वात्मरतिरेव स्यादात्मतृप्तश्च मानवः।
आत्मन्येव च सन्तुष्टस्तस्य कार्यं न विद्यते।।17।।

🕉� आत्मनिर्भरता का अमृत योग 🕉�

(श्रीमद् भगवद गीता पर आधारित एक लंबी मराठी कविता - चैप्टर 3, श्लोक 17)

श्लोक का छोटा मतलब

जो इंसान सिर्फ़ खुद में खुश रहता है, खुद में पूरी तरह खुश रहता है और खुद में ही संतुष्ट रहता है, उसे इस दुनिया में कोई फ़र्ज़ नहीं रह जाता (वह कर्म के बंधन से आज़ाद हो जाता है)।

लंबी मराठी कविता

कड़वा 1: खुद के घर

बिना किसी इच्छा के, बिना किसी उम्मीद के,
वह खुद पर भरोसा करने लगता है;
वह अंदर की चीज़ों में खुश रहता है, बाहर से अलग,
जिसका मन खुद का भक्त है। (🙏)

मतलब (पदचा मराठी अर्थ): उसकी कोई इच्छा नहीं, कोई उम्मीद नहीं; वह खुद में खुश रहने लगता है। बाहरी चीज़ों में खुश हुए बिना, वह अपने अंदर के 'मैं' में खुश रहता है, जैसे मन में 'मैं' ही उसका भक्त हो।

कड़वा 2: संतोष का सागर

उसे दुनिया का रूप-रंग नहीं चाहिए,
एक संतुष्ट आत्मा, न ही किसी चीज़ की हवा;
उसे बाहरी सुखों की चाहत नहीं होती,
वह हमेशा मीठे आनंद में डूबा रहता है। (🌊)

मतलब (पदचा मराठी अर्थ): उसे इस दुनिया की पल भर की चीज़ों का कोई आकर्षण नहीं होता; क्योंकि उसकी आत्मा पूरी तरह से संतुष्ट है, इसलिए उसे किसी चीज़ की चाहत नहीं होती। उसे बाहरी सुखों की ज़रूरत महसूस नहीं होती, वह हमेशा हमेशा मीठे रूहानी आनंद में डूबा रहता है।

कड़वा 3: संतोष की पराकाष्ठा

खुद के बारे में सोचना ही उसका संतोष है,
वह अपना सम्मान अपने अंदर रखता है;
उसे किसी और चीज़ की उम्मीद नहीं होती,
उसे आत्मा में ही मोक्ष मिलता है। (🌟)

मतलब (पदचा मराठी अर्थ): क्योंकि उसे खुद का ज्ञान हो गया है, वही उसका सच्चा संतोष है। वह अपने स्वभाव में स्थिर रहता है और खुद का सम्मान करता है (बाहरी सम्मान और अपमान उस पर लागू नहीं होते)। उसे किसी और चीज़ की उम्मीद नहीं रहती, क्योंकि उसने आत्मा में ही मोक्ष पा लिया है।

कड़वा 4: कर्म के बंधन से मुक्ति

कर्म के फल की आसक्ति,
आत्मा में उसका स्थायी निवास;
वह शरीर का कर्म दुनिया के लिए करता है,
लेकिन अपने स्वार्थ के लिए नहीं। (🕊�)

अर्थ (पदचा मराठी अर्थ): उसे कर्म के फल की कोई इच्छा नहीं होती, क्योंकि वह हमेशा आत्मा में रहता है। वह शरीर के ज़रिए दुनिया के लिए कर्म करता है, लेकिन वे कर्म उससे चिपकते नहीं हैं, क्योंकि उनके पीछे कोई स्वार्थ नहीं होता।

कड़वा 5: काम का अंत

उसके पास कोई काम नहीं बचा है,
क्योंकि उसका सत्य आर्य हो गया है;
सभी कर्तव्य पूरे हो गए हैं,
जीवन के बंधन पुराने हो गए हैं। (🔓)

मतलब (पदच मराठी अर्थ): उसे अपने लिए कुछ नहीं करना है, क्योंकि उसे सच पता चल गया है। उसके सारे फ़र्ज़ (जो आसक्ति से पैदा होते हैं) पूरे हो गए हैं; ज़िंदगी में कर्म के बंधन अब पुराने और टूट चुके हैं।

कदवे 6: स्थितप्रज्ञ के लक्षण

वह सच्चा स्थितप्रज्ञ योगी है,
वह दुनिया में घूमने वाला है, दुनिया का मज़ा लेने वाला नहीं;
वह कर्म करने वाला है, पर कर्ता नहीं,
वह आत्मा का बोलने वाला है। (🧘)

मतलब (पदच मराठी अर्थ): वह सच्चा स्थितप्रज्ञ योगी है। वह इस दुनिया में घूमता है, पर कर्मों का फल नहीं भोगता। वह कर्म करता है, पर उसे 'मैं कर रहा हूँ' का अहंकार नहीं होता। वह आत्मा के राज़ जानता है।

कदवे 7: आखिरी मैसेज

जो लोग आत्मा में शांति पाते हैं,
उनकी उलझनें दूर हो जाती हैं;
कर्मों के फल को छोड़ देना,
वही भगवान का वरदान है। (🎁)

मतलब (पदचा मराठी अर्थ): जो लोग रूहानी खुशी में शांति पाते हैं, उनकी सारी गलत भटकन दूर हो जाती है। जब वे कर्मों के फल की चाहत छोड़ देते हैं, तो उन्हें भगवान का वरदान मिलता है।

इमोजी समरी (इमोजी सारांश)
🙏 🌊 🌟 🕊� 🔓 🧘 🎁 🕉�

--अतुल परब
--दिनांक-23.11.2025-रविवार.       
===========================================