कान्हा और गोपियाँ-😋🤏😄😠🎶💥😡🏃‍♀️😁❤️🥰🙏

Started by Atul Kaviraje, November 23, 2025, 07:33:20 PM

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Atul Kaviraje

कान्हा और गोपियाँ-

१. परतों पर परत, घट एक-दूजे पर,
निकली थीं "गोपियाँ" बाजार को।
शरारती "कान्हा" रास्ता रोककर,
गोपालों संग करे दही-काले की तैयारी को।

२. मीठा दही और मक्खन सफेद,
*सर पर लेकर चलीं थीं सब खेद।
कान्हा बोले, "मुझे दो थोड़ा,
आज करें सब मिलकर बड़ा। "
(खेद - खेद का मतलब दुख है, पर यहाँ कविता के प्रवाह में लिया गया है। इसका वास्तविक अर्थ 'समूह' या 'जत्था' ऐसा हो सकता था जो यमक में नहीं आता।)

३. गोपियाँ हँसीं, गोपियाँ रूठीं,
"बेटा, क्यों छेड़ते हो हमें?" वे बोलीं।
"माँ को बताएँगे तुम्हारी शरारतें,
क्यों नहीं खाते जो दिया तुम्हें?"

४. कान्हा हँसा, बाँसुरी बजाई,
"मेरा मन दही-मक्खन पर लुभाया।"
गोपालों ने घट फोड़े,
दही-दूध रास्ते पर बिखेरे।

५. चिढ़ीं गोपियाँ, दौड़ीं पीछे,
"कान्हा, रुक, ऐसे क्यों करते हो?"
यशोदा मैया को बताएँगी सब,
"तुम्हारे बच्चे से हमारे ही सब नर्व।"

६. कान्हा भागा, गोपाल हँसे,
"दही-काला" उन्होंने मज़े से खाया।
राधा ने देखा दूर से सब,
उसके मन में प्रेम की सुगंध समाई।

७. शरारती होकर भी वही प्यारा,
गोकुल के लोगों के मन में वही बसा।
"दही-काले" की लीला न्यारी,
कान्हा, तू ही हमारे जीवन का हरी।

इमोजी सारांश: 🥛🧈 mischievous 😋🤏😄😠🎶💥😡🏃�♀️😁❤️🥰🙏

--अतुल परब
--दिनांक-23.11.2025-रविवार.
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