🌳 प्रकृति और इंसान: टूटा रिश्ता 💔🏞️ ✋ 💥 🏙️ 💨 😟 🌡️ 🌊 🌪️ 🐅 😢 🚫 🗑️ 🤢

Started by Atul Kaviraje, November 26, 2025, 08:03:46 PM

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Atul Kaviraje

प्रकृति और मानव: बिगड़ता संतुलन-

प्रकृति और इंसानों के बीच बिगड़ते बैलेंस के गंभीर और ज़रूरी टॉपिक पर आधारित

🌳 प्रकृति और इंसान: टूटा रिश्ता 💔

(लंबी मराठी कविता)

कड़वा 1

हरे-भरे जंगल, पहाड़ और घाटियाँ, 🏞�
प्रकृति ने ज़िंदगी में ये खूबसूरत साथ दिया। ✋
इंसानों ने किया, लालच का वो वार,
बैलेंस बिगड़ा, आज अफ़रा-तफ़री है। 💥

मतलब:
हरे-भरे जंगल, पहाड़ और घाटियाँ प्रकृति के साथ थे।
प्रकृति ने हमारी ज़िंदगी में ये खूबसूरत साथ दिया था।
लेकिन इंसानों ने लालच की वजह से प्रकृति पर हमला किया।
तो प्रकृति का बैलेंस बिगड़ा, और आज बड़ी गड़बड़ है (हँसी)।

इमोजी समरी: 🏞� ✋ 💥

कड़वा 2

पेड़ काट दिए, सीमेंट के जंगल बना दिए, 🏙�
शुद्ध हवा चली गई, हवा बदबूदार हो गई। 💨
पानी के सोर्स सूख गए, सब कुछ सूखा हो गया,
अपनी मतलबी इच्छाओं की वजह से, ज़िंदगी पागल हो गई। 😟

मतलब:
इंसानों ने पेड़ काटकर सीमेंट के जंगल (शहर) बना दिए।
इसलिए, साफ़ हवा गायब हो गई और हवा गंदी (गंदी) हो गई।
पानी के सोर्स सूख गए, सब कुछ सूखा हो गया।
अपने फ़ायदे के लालच (इच्छा) की वजह से, ज़िंदगी बेचैन हो गई है।

इमोजी समरी: 🏙� 💨 😟

कड़वा 3

टेम्परेचर बढ़ा, बर्फ़ पिघलने लगी, 🌡�
समुद्र का पानी, शहरों की तरफ़ तेज़ी से बढ़ता है। 🌊
मौसमों के सारे साइकिल, आज अस्त-व्यस्त हो गए,
कुदरत ने दिखाई, अपनी बड़ी ताकत। 🌪�

मतलब:
धरती का टेम्परेचर बढ़ गया है और पोल्स पर बर्फ़ पिघलने लगी है। समुद्र का लेवल बढ़ रहा है और पानी शहरों की तरफ आ रहा है।
आज सभी मौसमों का क्रम (साइकल) बदल गया है।
नेचर ने अपनी बहुत बड़ी ताकत (ताकत) दिखाई है।

इमोजी समरी: 🌡� 🌊 🌪�

कड़वा 4

सभी जानवर और पक्षी, उनके घर तबाह हो गए, 🐅
इंसान के लालच की वजह से, उन्हें बहुत तकलीफ़ हुई। 😢
जंगल काला है, वो नेचुरल रंग,
इंसान नेचर से सहमत नहीं है, साथ में। 🚫

मतलब:
सभी जंगली जानवर और पक्षी अपने घर (नेचुरल हैबिटैट) खो चुके हैं।
इंसान के लालच की वजह से, उन्हें बहुत तकलीफ़ उठानी पड़ी।
जंगल ने अपना नेचुरल रंग (खूबसूरती) खो दिया है।
इंसान नेचर से बिल्कुल सहमत नहीं है।

इमोजी समरी: 🐅 😢 🚫

कड़वे 5

प्लास्टिक और कचरा, ज़मीन पर फैला हुआ है, 🗑�
ज़मीन, पानी, हवा, प्रदूषित हो गए हैं। 🤢
इंसान भूल गया है, इस धरती माँ को,
वह अपने ही पैरों पर लात मार रहा है। 🤦�♂️

मतलब:
प्लास्टिक और कचरा ज़मीन पर हर जगह फैला हुआ है।
ज़मीन, पानी और हवा जैसे प्राकृतिक संसाधन प्रदूषित हो गए हैं।
इंसान भूल गया है कि धरती उसकी माँ है।
वह अपने ही कामों से अपने ही पैरों पर लात मार रहा है (नुकसान पहुँचा रहा है)।

इमोजी समरी: 🗑� 🤢 🤦�♂️

कड़वे 6

अब जागने का, गंभीरता से सोचने का समय है, 🧠
पेड़ लगाओ, धरती को सहारा दो। 🌳
इंसानों को पर्यावरण का कर्ज़ चुकाना चाहिए,
प्रकृति का बैलेंस फिर से बनाना चाहिए। ⚖️

मतलब:
अब सीरियसली सोचने का समय है।
पेड़ लगाओ, धरती को सहारा दो।
इंसानों को पर्यावरण का कर्ज़ चुकाना चाहिए।
प्रकृति का बैलेंस फिर से ठीक से बनाना चाहिए।

इमोजी समरी: 🧠 🌳 ⚖️

कड़वे 7

एक बार फिर, प्रकृति को बचाओ, उसकी कद्र करो, 💖
आइए पर्यावरण के पवित्र वचन को बनाए रखें। 🕊�
हाथों में हाथ डालकर, आज संकल्प लें, 🙏
चलो दुनिया को पवित्र करें, यही हमारा काम है। 🌏

मतलब:
आइए एक बार फिर प्रकृति के महत्व को बचाकर रखें।
आइए पर्यावरण के पवित्र विचारों को याद करें।
आइए हम सब मिलकर आज शपथ लें।
दुनिया को पवित्र बनाना हमारा काम है।

इमोजी समरी: 💖 🕊� 🙏 🌏

इमोजी समरी: 💖 🕊� 🙏 🌏

✨ इमोजी समरी (इमोजी की समरी) ✨
🏞� ✋ 💥 🏙� 💨 😟 🌡� 🌊 🌪� 🐅 😢 🚫 🗑� 🤢 🤦�♂️ 🧠 🌳 ⚖️ 💖 🕊� 🙏 🌏

यह कविता प्रकृति और इंसानों के बीच बिगड़े हुए बैलेंस और पर्यावरण को बचाने की ज़रूरत पर ज़ोर देती है।

--अतुल परब
--दिनांक-26.11.2025-बुधवार.
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