आत्मा एक ऐसा वृत्त है, जिसकी परिधि कहीं नहीं है-2-🔱 🧘‍♂️ ♾️ 🌐 💖 🙏🧘‍♂️ 🔓

Started by Atul Kaviraje, November 30, 2025, 03:07:37 PM

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Atul Kaviraje

SWAMI VIVEKANAND QUOTS-
Quote 1
The soul is a circle whose circumference is nowhere (limitless), but whose centre is in some body. Death is but a change of centre. God is a circle whose circumference is nowhere, and whose centre is everywhere. When we can get out of the limited centre of body, we shall realise God, our true Self.

🔱 स्वामी विवेकानंद की उक्ति पर विस्तृत विवेचनात्मक लेख 🕉�

६. ईश्वर-प्राप्ती आणि आत्म-साक्षात्कार (ईश्वर-प्राप्ति और आत्म-साक्षात्कार) - Realisation of God
जब सीमित केंद्र टूटता है, तब ईश्वर का साक्षात्कार होता है।

६.१. केंद्र विस्तृत होणे (केंद्र का विस्तृत होना): जब साधक शरीर के केंद्र से बाहर आता है, तो उसका केंद्र हर जगह फैल जाता है, जो ईश्वर का ही स्वरूप है। अब वह स्वयं को शरीर नहीं, बल्कि सर्वव्यापी चैतन्य (Consciousness) जानता है।

६.२. द्वैताचे विसर्जन (द्वैत का विसर्जन): 'ईश्वर अलग है और मैं अलग हूँ' यह भावना नष्ट हो जाती है। यह बोध होता है कि ईश्वर की पहचान और मेरी पहचान (सच्चा स्वरूप) एक ही है।

६.३. परमानंदाची स्थिती (परमानंद की स्थिति): ईश्वर-साक्षात्कार से परमानंद की प्राप्ति होती है, क्योंकि अनंत स्वरूप में कोई दुःख या भय नहीं होता।

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७. आपले खरे 'मी' म्हणजे आत्मा (हमारा सच्चा 'स्व' ही आत्मा है) - Our True Self
स्वामीजी स्पष्ट करते हैं कि ईश्वर की प्राप्ति का अर्थ अपने ही सच्चे स्वरूप को जानना है।

७.१. आत्मा-परमात्मा एकरूपता (आत्मा-परमात्मा की एकरूपता): हमारी आत्मा मूल रूप से उस परमेश्वर से अलग नहीं है। यह एक ही महासागर की बूँदें हैं।

७.२. शुद्ध स्वरूप (शुद्ध स्वरूप): शरीर, मन और बुद्धि के आवरण के नीचे जो तत्व है, वही हमारा शुद्ध और सच्चा 'स्व' (Self) है। यही सच्चिदानंद (सत्य-चेतना-आनंद) है।

७.३. भक्तीचा अंतिम टप्पा (भक्ति का अंतिम चरण): सच्ची भक्ति तब पूर्ण होती है, जब भक्त अपने इष्ट के साथ एक हो जाता है। यह 'अहं ब्रह्मास्मि' (मैं ब्रह्म हूँ) की स्थिति है।

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८. व्यावहारिक जीवनातील महत्त्व (व्यावहारिक जीवन में महत्व) - Practical Relevance
इस दार्शनिक सिद्धांत का हमारे रोज़मर्रा के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है।

८.१. समता आणि प्रेमभाव (समानता और प्रेमभाव): जब हम यह जान लेते हैं कि ईश्वर का केंद्र हर जगह है, और हर शरीर में वही आत्मा है, तो हमारे मन में सबके प्रति समानता और प्रेमभाव जागृत होता है।

८.२. निःस्वार्थ कर्म (निःस्वार्थ कर्म): 'मैं यह शरीर हूँ' इस केंद्र से बाहर निकलने पर, कर्म का फल पाने की आसक्ति कम होती है। हम निःस्वार्थ भाव से लोक-कल्याण के लिए कार्य करते हैं।

८.३. धैर्य आणि निर्भयता (धैर्य और निर्भयता): मृत्यु केवल केंद्र का परिवर्तन है यह जानने पर, जीवन के संकटों में धैर्य आता है और मृत्यु का भय नष्ट हो जाता है।

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९. दृष्टान्त: पाण्याची लाट (दृष्टांत: पानी की लहर) - Example of Wave and Ocean
इस उक्ति को समझने के लिए एक सरल और प्रभावी उदाहरण।

९.१. लाट म्हणजे केंद्र (लहर यानी केंद्र): उदाहरण: समुद्र में उठने वाली एक लहर (Wave) आत्मा के सीमित केंद्र के समान है। वह लहर कुछ समय के लिए 'मैं' (शरीर) हूँ मानती है।

९.२. समुद्र म्हणजे परिघ (समुद्र यानी परिधि): पूरा समुद्र (Ocean) अनंत परिधि के समान है। लहर का केंद्र (स्वरूप) सीमित है, पर उसका मूल (पानी) अनंत है।

९.३. लाटेचे समुद्रात विलीन होणे (लहर का समुद्र में विलीन होना): जब लहर शांत होती है, तो वह समुद्र में विलीन हो जाती है। उसी प्रकार, शरीर के केंद्र को त्यागने पर आत्मा ईश्वर (समुद्र) के अनंत केंद्र में विलीन हो जाती है।

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१०. भक्तीभाव आणि समर्पण (भक्तिभाव और समर्पण) - Devotion and Surrender
यह ज्ञान केवल बौद्धिक नहीं, बल्कि भक्ति और समर्पण के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।

१०.१. गुरूंचे मार्गदर्शन (गुरु का मार्गदर्शन): केंद्र से बाहर निकलने का मार्ग कठिन है। सच्चा गुरु या इष्ट ही इस मार्ग पर समर्पण और विश्वास (भक्ति) के साथ चलने में सहायता करता है।

१०.२. अहंकार विसर्जन (अहंकार का विसर्जन): भक्ति का अर्थ है - 'मेरा केंद्र' इस अहंकार को प्रभु के चरणों में अर्पित करना। समर्पण से ही ईश्वर हमें अपने सर्वव्यापी केंद्र में समाहित करते हैं।

१०.३. विवेकानंदांचा संदेश (विवेकानंद का संदेश): स्वामीजी का यह संदेश हमें अपने भीतर के देवत्व को पहचानकर, भयमुक्त और प्रेमपूर्ण जीवन जीने की प्रेरणा देता है।

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लेखाचा सारांश (लेख का सारांश)
स्वामी विवेकानंद की यह उक्ति हमें सिखाती है कि हम न तो सीमित हैं, न ही नश्वर। हम उस अनंत ईश्वर के ही केंद्र हैं। शरीर की सीमा तोड़कर अपने सर्वव्यापी स्वरूप को जानना ही जीवन का परम लक्ष्य है।

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--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-27.11.2025-गुरुवार.
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