'यहाँ' और 'यहाँ' ही मोक्ष है - आत्मा की सार्वभौमिकता-1-💡🕉️👑🧠❌🧘‍♂️💪💖✨📜

Started by Atul Kaviraje, December 11, 2025, 08:38:21 PM

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Atul Kaviraje

स्वामी विवेकानंद के विचार-
कोट 13
'यहाँ' और 'परलोक' बच्चों को डराने वाले शब्द हैं। यह सब 'यहाँ' है। भगवान में जीना और चलना - यहाँ भी, इस शरीर में भी! सारा खुद बाहर निकल जाना चाहिए; सारा अंधविश्वास खत्म हो जाना चाहिए।

🦁 स्वामी विवेकानंद के विचार: वर्तमान में दिव्यता 🦁

टाइटल: 'यहाँ' और 'यहाँ' ही मोक्ष है - आत्मा की सार्वभौमिकता

कोट (कोट 13):
"'यहाँ' और 'परलोक' बच्चों को डराने वाले शब्द हैं। यह सब 'यहाँ' है। भगवान में जीना और चलना - यहाँ भी, इस शरीर में भी! सारा खुद बाहर निकल जाना चाहिए; सारा अंधविश्वास खत्म हो जाना चाहिए।"

1. विचार का असली मतलब और महत्व
सच्चाई का तुरंत एहसास: स्वामी विवेकानंद 'अभी' और 'यहाँ' (अभी का पल और अभी की जगह) के महत्व पर ज़ोर देते हैं। भगवान या मोक्ष परलोक में नहीं मिलता, बल्कि इसी पल मिलता है।
बचकानी सोच का खंडन: वे ऐसे विचारों को 'बच्चों को डराने वाली बातें' मानते हैं कि अगर कोई 'यहाँ' (इस जीवन में) अच्छे काम करता है, तो उसे 'वहाँ' (अगले जीवन/स्वर्ग में) खुशी मिलेगी।
मोक्ष का तुरंत मिलना: मोक्ष कोई भविष्य की घटना नहीं है, बल्कि इस जीवन में, इस शरीर में अनुभव की जाने वाली एक स्थिति है।
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2. 'स्वर्ग और नर्क' के कॉन्सेप्ट का एनालिसिस
डर पैदा करने वाले तरीके: स्वर्ग और नर्क के कॉन्सेप्ट का इस्तेमाल लोगों को धर्म की प्रैक्टिस की ओर मोड़ने के लिए डर पैदा करने वाले तरीकों के तौर पर किया जाता है, लेकिन वे उन्हें आध्यात्मिक सच्चाई से दूर कर देते हैं। कर्म का अभी का फल: स्वामी के अनुसार, हर कर्म का फल इसी जीवन में और इसी पल मिलता है। दुख और खुशी तो बस अभी के विचारों और कामों का ही रिफ्लेक्शन है।
उदाहरण: जैसे पिछले गलत फैसले आज दुख देते हैं, वैसे ही आज की पवित्रता भविष्य में खुशी लाएगी।
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3. भगवान का होना 'यहाँ' और 'इस शरीर में'
अद्वैत फिलॉसफी: यह कोट अद्वैत वेदांत के 'सब कुछ में व्याप्त ब्रह्म' के सिद्धांत पर आधारित है। भगवान किसी स्वर्ग में नहीं हैं, बल्कि हर जगह हैं, यानी यहीं (सब कुछ यहीं है)।
शरीर भगवान का मंदिर है: हमारा शरीर सिर्फ एक फिजिकल कवर नहीं है, यह भगवान का असली घर है (भगवान में रहने और चलने के लिए – यहाँ भी, इस शरीर में भी!)।
उदाहरण: स्वामी ने भगवद गीता के श्लोक 'ईश्वर: सर्वभूतानां हृद्देशे अर्जुन तिष्ठति' (ईश्वर सभी प्राणियों के हृदय में निवास करते हैं) को आधुनिक रूप दिया।

4. 'स्व' को खत्म करना
'मैं' का विचार छोड़ना: 'सारा स्व निकल जाए' का मतलब है अहंकार और स्वार्थ को पूरी तरह से खत्म करना। 'मैं' की वजह से ही इंसान खुद को ईश्वर से अलग मानता है।

सेवा का भाव: जब अहंकार खत्म हो जाता है, तो इंसान अपनी खुशी के बजाय दूसरों की सेवा करने में खुशी पाता है। यही ईश्वर में रहने का तरीका है।

उदाहरण: जैसे नदी अपना अस्तित्व छोड़कर सागर में मिल जाती है, वह खुद सागर बन जाती है।

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5. अंधविश्वास और रीति-रिवाजों को खत्म करना
बुद्धि का इस्तेमाल: 'सभी अंधविश्वास खत्म कर देने चाहिए' का मतलब है किसी भी बात पर आँख बंद करके यकीन न करना, बल्कि समझदारी और आत्मा के अनुभव से सच जानना।
रूढ़िवादिता को दूर करना: सभी अंधविश्वास, बेकार के रीति-रिवाज, डर पर आधारित पूजा या अमानवीय रीति-रिवाज, तुरंत बंद कर देने चाहिए।
उदाहरण: डर पर आधारित अंधविश्वासों से बचें, जैसे 'नारियल तोड़े बिना कोई काम नहीं होगा' या 'अगर तुम मांस खाओगे तो भगवान तुम्हें सज़ा देंगे'।
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आर्टिकल सारांश इमोजी: 💡🕉�👑🧠❌🧘�♂️💪💖✨📜

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-09.12.2025-मंगळवार.
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