कुणी आपल्यालाच नाही पटली ...

Started by naikamitfb, February 11, 2012, 08:33:02 AM

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naikamitfb

कुणी आपल्यालाच नाही पटली  ...
कवी :  अमित अरविंद नाईक - कॅलिफोर्निया - अमेरिका


दोन  तास  वाकून  मोडून  एकी  साठी  diagram  काढली ,  'खूपच  हुशार आहेस'  म्हणून  सत्कार  करून  गेली 
हरभर्याच्या  झाडाची  फांदी  मी  घट्ट  पकडली, गोड  गोड बोलून  माझ्याकडून  तिने  सगळी  कामे  उरकली  !

अथक  परिश्रम  करून  आमचीच  नशीबे   फुटली,   सालं  आपण  एवढे  करून  कुणी  आपल्यालाच  नाही  पटली  !

एकी बद्दल तर आमची उत्सुकता शिखरावर पोहोचली,  जेव्हा  पिक्चर ला  येते  असा  मला  फोने  वर  बोलली   
"फ्रेंड" ला  बरोबर  अनुणून  त्यालाच  चिटकून  बसली,  सगळा  खर्च  मीच  करून  फक्त  bye take care म्हटली  !

माझी  अवस्था  त्या  लाथाडलेल्या  फुटबाल  सारखी  झाली,  सालं  आपण  एवढे  करून  कुणी  आपल्यालाच  नाही  पटली  !

आख्या  जगातली  जोक ची पुस्तकं  मी  घासून  रटली,  तिला  हसवन्या  च्या  मेहनतीत  माझी  दहा  किलो घटली
डिप्रेस  झालेल्या  boss ला  माझेच  जोक सांगत  सुटली,   फिदा  झाला  तिच्यावर  तो  आणि  इकडे  माझीच  नोकरी  गेली  !

माझ्या  कलेचा  उपयोग  करून  दुर्दैवाची  भूत  हसली,  सालं  आपण  एवढे  करून  कुणी  आपल्यालाच  नाही  पटली  !

भाजलेल्या  मनाच्या  नगरीला  ला  मीच  हाताने  आग  लावली,  तुटलेल्या  स्वप्नाच्या  घरट्याची  राख  पण  नाही  पहिली 
सगळे  विसरून  यशस्वी  झालो , घरच्यांनी  पाठ  थोपटली,  स्वतः  ला  आदर्श  सुउन  आणि  मला  सुंदर  cindrella आणली 

खडतर  त्या  रस्त्यावर  चालतांना  पाउलं भेदरली,  कशी  काय राव आपल्याला  कधी  कुणीच  नाही  पटली  !

पण  जोक. पिक्चर आणि  मदतीला आता  अजून  मज्जा  आली, खुश  ठेवतो  म्हणून  मला  प्रेम  सागरात  घेऊन  बुडली 
मनाची  ती  झालेली  फरफट  आठवून  त्यावर  कीव  वाटली , म्हणून  सांगतो  नुकसान  न  करता  हक्कची  शोधा  आपली  !

आतुलाणीय्या  ह्या   cinderella मूळे  माझी  नागरी  सजली,  बरं  झाला रे , मला  त्यातली  कुणीच  नाही  पटली  !!!
चांगल झालं रे , मला  त्यातली  कुणीच  नाही  पटली  !!! ....





केदार मेहेंदळे



Gajanan Mandwe