शाप मेहंदीचा.

Started by amoul, April 02, 2012, 12:12:08 AM

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amoul

ज्यांना  मुलं  होत  नाही  अश्यास्त्रियांना  समाज  वांझ  म्हणतो,पण  असा  शिविवाचक  शब्द  पुरुषांसाठी  नाही  कारण  समाज  कधी  यासाठी  पुरुषाला  दोषी  धरतचनाही,
आणि  शब्ददिला  असेल  तरतोनिपुत्रिक  असा  सोज्वळ  शब्द  दिला  आहे.
आता  जी  कविता  सादर  करीत  आहे  ती  एक  पुरुष  म्हणून  करणे  काहींना  योग्य  वाटणारनाही, पण  जरा  भाऊ,  बाप , मुलीचा  मामा,
मुलीचा  काका  या  दृष्टीकोनातुना  बघितले  तर पुरुषपण  गळून  जाईल, आणि  प्रश्न  उरेल  कि  खरच  "ती"च  जवाबदार  असते  का  या  सगळ्याला.

शाप  मेहंदीचा. 

कुण्या  हातावर  रंगते  मेहंदी,
कुण्या  हातावर  मेहंदी  रंगतच  नाही.
सारा  दोष  सारे  देती  मेहंदीलाच,
हाताला  कुणी  दोषी  धरतच  नाही.

धर्म  सदा  रंगण्याचा  असे  मेहंदीचा,
हातातल्या  उर्जेने  चढे  रंग  मेहंदीचा,
पानापानाला  कुटून  बने  लेप  मेहंदीचा,
चढे  ना  रंग  हा  काय  गुन्हा  केवळ  मेहंदीचा ?
सारा  भोग  सारा  त्रास  मेहंदीच्या  नशिबाला,
असे  किती  सोसले  मेहंदीने  हे  नसे  हिशोबाला.

काल  परवाही  कुण्या  हातांनी  झाड  तोडून  टाकले,
म्हणे  असेच  भोग  ना  रंगणाऱ्या  मेहंदीने  भोगायला  हवे,
ज्या  हातांमध्ये  कुवत  नसेल  मेहंदी  रंगवून  घेण्याची,
मग  सांगा  का  नको  ते  हातही  तोडायला  हवे ?
मेहंदी  निमूट  सोसते  म्हणून  भोगते  हा  भोग,
किती  वर्षे  झाली  नाही  बारा  हा  समाजातला  रोग.

................अमोल

संदेश प्रताप

Awesome re bhavashi................khup divsaani

केदार मेहेंदळे


jyoti salunkhe

khup sunder kavita aahe .....agti jivant kadha .....awesome  :)